|
श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
पहला अध्याय
स च तेन चोदितः तत्क्षणाद् एव भीष्मद्रोणादीनां सर्वेषाम् एव महीक्षितां पश्यतां यथाचोदितम् अकरोत्। ईदृशी भवदीयानां विजयस्थितिः, इति च अवोचत् ।। 24-25।।
उस अर्जुन के द्वारा प्रेरित श्रीकृष्ण ने भीष्म-द्रोण आदि के तथा सभी राजाओं के देखते-देखते उसी क्षण अर्जुन की प्रेरणा के अनुसार (रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा) कर दिया। आपके पुत्रों की विजयस्थिति इस प्रकार की है, ये सब बातें भी संजय ने कहीं ।। 24-25।।
तत्रापश्यत्स्थितान पार्थ: पितृनथ पितामहान ।
आचार्यन्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥26॥
श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेय: सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ॥27॥
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ।
वहाँ उन दोनों सेनाओं में अर्जुन ने युद्ध के लिये सुसज्जित होकर स्थित पिता (ताऊ-चाचा), पितामह, आचार्य, मामा, भाई, पुत्र, पौत्र, मित्र, श्वशुर और सुहृदों को देखा। उन सब बन्धु-बान्धवों को खड़ा देखकर वह कुन्ती पुत्र अर्जुन परम करुणा से भर गया और विषाद करता हुआ इस प्रकार कहने लगा।। 26-27।।
|
|