श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
तीसरा अध्याय
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन: ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु स: ॥42॥
इन्द्रियों को प्रबल कहते हैं, इन्द्रियों से प्रबल मन है, मन से प्रबल बुद्धि है और बुद्धि से भी जो प्रबल है वह (काम) है।।42।।
ज्ञान विरोधे प्रधानानि इन्द्रियाणि आहुः; यत इन्द्रियेषु विषयव्यापृतेषु आत्मनि ज्ञानं न प्रवर्तते, इन्द्रियेभ्यः परं मनः, इन्द्रियेषु उपरतेषु अपि मनसि विषयप्रवणे आत्मज्ञानं न सम्भवति। मनसः तु परा बुद्धिः, मनसि विषयान्तरविमुखे अपि विपरीताध्यवसायप्रवृत्तायां बुद्धौ न आत्मज्ञानं प्रवर्तते। सर्वेषु बुद्धिपर्यन्तेषु उपरतेषु अपि इच्छापर्यायः कामो रजः समुद्भवो वर्तते चेत्, स एव एतानि इन्द्रियादीनि अपि स्वविषयेषु वर्तयित्वा आत्मज्ञांन निरुणद्धि, तदिदम् उच्यते-यो बुद्धेः परतः तु सः, इति, बुद्धेः अपि यः परः स काम इत्यर्थः।।42।।
ज्ञान का विरोध करने में पहले इन्द्रियों को प्रधान बतलाते हैं; क्योंकि इन्द्रियों के विषयों में प्रवृत्त रहते आत्मविषयक ज्ञान नहीं होता। इन्द्रियों से बढ़कर मन है; क्योंकि इन्द्रियों के कर्मों से उपरत हो जाने पर भी मन विषयों की ओर झुका है तो आत्मज्ञान नहीं हो सकता। मन से भी बढ़कर बुद्धि है; क्योंकि मन के अन्य विषयों से विमुख हो जाने पर भी यदि बुद्धि विपरीत निश्चय में लगी है तो आत्मज्ञान नहीं होता। बुद्धि तक सब-के-सब विषयों से उपरत हो जायँ, इसके बाद भी यदि, जिसका नाम इच्छा है, वह रजोगुण से उत्पन्न काम वर्तमान रहता है, तो वही इन इन्द्रिय, मन और बुद्धि को भी अपने-अपने विषयों में लगाकर आत्मज्ञान को रोक देता है, इसीलिये कहते हैं कि जो बुद्धि से भी बढ़कर (विरोधी) है, वह काम है।।42।।
एवं बुद्धे परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना ।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥43॥
इस प्रकार इस दुर्विजय कामरूप शत्रु को बुद्धि से भी प्रबल जानकर वीर अर्जुन! आत्मा से आत्मा को रोककर तू इसे मार।। 43।।
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवतगीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां
योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो
नम तृतीयोअध्यायः।। 3।।
एवं बुद्धेः अपि परं कामं ज्ञान विरोधिनं वैरिणं बुद्ध्वा आत्मानं मनः आत्मना बुद्धया कर्मयोगे अवस्थाप्य एनं कामरूपं दुरासदं शत्रुं जहि नाशय इति ।। 43।।
इस प्रकार बुद्धि से भी बढ़कर काम को ज्ञान का विरोधी शत्रु समझकर आत्मा को आत्मा से-मन को बुद्धि से कर्मयोग में लगाकर इस कामरूप दुर्विजय शत्रु को मार-इसका विनाश कर ।।43।।
इति श्रीमद्भागवद्रामानुजाचार्य विरचिते श्रीमद्भगवद्गीताभाष्ये तृतीयोअध्यायः ।।3।।
इस प्रकार श्रीमान् भगवान रामानुजाचार्य द्वारा रचित श्रीमद्भागवतगीता-भाष्य के हिन्दी भाषानुवाद का तीसरा अध्याय पूरा हुआ।।3।।
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