श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
चतुर्दश अध्याय
अर्जुन उवाच अर्थ- अर्जुन बोले- हे प्रभो! इन तीनों गुणों से अतीत हुआ मनुष्य किन लक्षणों से युक्त होता है? उसके आचरण कैसे होते हैं? और इन तीनों गुणों का अतिक्रमण कैसे किया जा सकता है? व्याख्या- ‘कैर्लिंगैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो’- हे प्रभो! मैं यह जानना चाहता हूँ कि जो गुणों का अतिक्रमण कर चुका है, ऐसे मनुष्य के क्या लक्षण होते हैं? तात्पर्य है कि संसारी मनुष्य की अपेक्षा गुणातीत मनुष्य में ऐसी कौन सी विलक्षणता आ जाती है, जिससे साधारण व्यक्ति समझ ले कि यह गुणातीत पुरुष है? ‘किमाचरः’- उस गुणातीत मनुष्य के आचरण कैसे होते हैं? अर्थात साधारण आदमी की जैसी दिनचर्या और रात्रिचर्या होती है, गुणातीत मनुष्य की वैसी ही दिनचर्या-रात्रिचर्या होती है या उससे विलक्षण होती है? साधारण आदमी के जैसे आचरण होते हैं; जैसा खान-पान, रहन-सहन, सोना-जागना होता है, गुणातीत मनुष्य के आचरण, खान-पान आदि भी वैसे ही होते हैं या कुछ विलक्षण होते हैं? ‘कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते’- इन तीनों गुणों का अतिक्रमण करने का क्या उपाय है? अर्थात कौन सा साधन करने से मनुष्य गुणातीत हो सकता है? संबंध- अर्जुन के प्रश्नों में से पहले प्रश्न के उत्तर में भगवान आगे के दो श्लोकों में गुणातीत मनुष्य के लक्षणों का वर्णन करते हैं।
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