श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
त्रयोदश अध्याय
चहुँ दिसि आरति चहुँ दिसि पूजा । संसारी आदमी को जैसे बाहर-भीतर, ऊपर-नीचे सब जगह संसार-ही-संसार दीखता है, संसार के सिवाय दूसरा कुछ दीखता ही नहीं, ऐसे ही परमात्मा को तत्त्व से जानने वाले पुरुष को सब जगह परमात्मा-ही-परमात्मा दीखते हैं। ‘लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति’- अनन्त सृष्टियाँ हैं, अनन्त ब्रह्माण्ड हैं, अनन्त ऐश्वर्य हैं और उन सबमें देश, काल वस्तु, व्यक्ति आदि भी अनन्त हैं, वे सभी परमात्मा के अंतर्गत हैं। परमात्मा उन सबको व्याप्त करके स्थित हैं। दसवें अध्याय के बयालीसवें श्लोक में भी भगवान ने कहा है कि मैं सारे संसार को एक अंश से व्याप्त करके स्थित हूँ। संबंध- पूर्वश्लोक में सगुण-निराकार का वर्णन करके अब आगे के तीन श्लोकों में उसकी विलक्षणता, सर्वव्यापकता और सर्वसमर्थता का वर्णन करते हैं। |
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