श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
त्रयोदश अध्याय
उपाय- मनुष्य को जो कुछ अनुकूल सामग्री मिली है, उसको वह अपने लिए मानकर सुख भोगता है- यह महान बाधक है। कारण कि संसार की सामग्री केवल संसार की सेवा में लगाने के लिए ही मिली है, अपने शरीर-इंद्रियों को सुख पहुँचाने के लिए नहीं। ऐसे ही मनुष्य को जो कुछ प्रतिकूल सामग्री मिली है, वह दुःख भोगने के लिए नहीं मिली है, प्रत्युत संयोजन्य सुख का त्याग करने के लिए, मनुष्य को सांसारिक राग, आसक्ति, कामना, ममता आदि से छुड़ाने के लिए ही मिली है। तात्पर्य है कि अनुकूल और प्रतिकूल- दोनों परिस्थितियाँ मनुष्य को सुख-दुःख से ऊँचा उठाकर (उन दोनों से अतीत) परमात्म-तत्त्व को प्राप्त कराने के लिए ही मिली हैं- ऐसा दृढ़ता से मान लेने से साधक का चित्त इष्ट और अनिष्ट की प्राप्ति में स्वतः सम रहेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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