श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान् । अर्थ- द्रोण, भीष्म, जयद्रथ और कर्ण तथा अन्य सभी मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीरों को तुम मारो। तुम व्यथा मत करो और युद्ध करो। युद्ध में तुम निःसंदेह वैरियों को जीतोगे। व्याख्या- ‘द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान् मया हतांस्त्वं जहि’- तुम्हारी दृष्टि में गुरु द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म, जयद्रथ और कर्ण तथा अन्य जितने प्रतिपक्ष के नामी शूरवीर हैं, जिन पर विजय करना बड़ा कठिन काम है[1], उन सबकी आयु समाप्त हो चुकी है अर्थात वे सब कालरूप मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। इसलिए हे अर्जुन! मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीरों को तुम मार दो। भगवान के द्वारा पूर्वश्लोक में ‘मयैवैते निहताः पूर्वमेव’ और यहाँ ‘मया हतांस्त्वं जहि’ कहने का तात्पर्य यह है कि तुम इन पर विजय करो, पर विजय का अभिमान मत करो; क्योंकि ये सब-के-सब मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए हैं। ‘मा व्यथिष्ठा युध्यस्व’- अर्जुन पितामह भीष्म और गुरु द्रोणाचार्य को मारने में पाप समझते थे, यही अर्जुन के मन में व्यथा थी। अतः भगवान कह रहे हैं कि वह व्यथा भी तुम मत करो अर्थात भीष्म और द्रोण आदि को मारने से हिंसा आदि दोषों का विचार करने की तुम्हें किञ्चिन्मात्र भी आवश्यकता नहीं है। तुम अपने क्षात्रधर्म का अनुष्ठान करो अर्थात युद्ध करो। इसका त्याग मत करो। ‘जेतासि रणे सपत्नान्’- इस युद्ध में तुम वैरियों को जीतोगे। ऐसा कहने का तात्पर्य है कि पहले[2] अर्जुन ने कहा था कि हम उनको जीतेंगे या वे हमें जीतेंगे- इसका हमें पता नहीं। इस प्रकार अर्जुन के मन में संदेह था। यहाँ ग्यारहवें अध्याय के आरंभ में भगवान ने अर्जुन को विश्वरूप देखने की आज्ञा दी, तो उसमें भगवान ने कहा कि तुम और भी जो कुछ देखना चाहो, वह देख लो[3] अर्थात किसकी जय होगी और किसकी पराजय होगी- यह भी तुम देख लो। फिर भगवान ने विराटरूप के अंतर्गत भीष्म, द्रोण और कर्ण के नाश की बात दिखा दी और इस श्लोक में वह बात स्पष्ट रूप से कह दी कि युद्ध में निःसंदेह तुम्हारी विजय होगी। साधक को अपने साधन में बाधक रूप से नाशवान पदार्थों का, व्यक्तियों का जो आकर्षण दिखता है, उससे वह घबरा जाता है कि मेरा उद्योग कुछ भी काम नहीं कर रहा है; अतः यह आकर्षण कैसे मिटे! भगवान ‘मयैवैते निहताः पूर्वमेव’ और ‘मया हतांस्त्वं जहि’ पदों से ढाढ़स बँधाते हुए मानो यह आश्वासन देते हैं कि तुम्हारे को अपने साधन में जो वस्तुओं आदि का आकर्षण दिखायी देता है और वृत्तियाँ खराब होती हुई दिखती हैं, ये सब-के-सब विघ्न नाशवान हैं और मेरे द्वारा नष्ट किए हुए हैं। इसलिए साधक इनको महत्त्व न दे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भीष्म, द्रोण और कर्ण अपनी शूरवीरता के कारण संसार में प्रसिद्ध थे; अतः इनको जीतने में कठिनता थी। जयद्रथ तो ऐसा कोई नामी शूरवीर था नहीं, पर उसको एक वरदान था कि ‘तुम्हारा सिर कोई पृथ्वी पर गिरा देगा तो उस (सिर गिराने वाले) के सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे। इस वरदान के कारण जयद्रथ को मारने में कठिनता थी।’
- ↑ गीता 2:6 में
- ↑ गीता 11:7
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