श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
यहाँ एक शंका होती है कि अर्जुन ने अपनी और कौरव पक्ष की सेना के सभी लोगों को भगवान के मुखों में जाकर नष्ट होते हुए देखा था, तो फिर भगवान ने यहाँ केवल प्रतिपक्ष की ही बात क्यों कही कि तुम्हारे युद्ध किए बिना भी ये प्रतिपक्ष की ही बात क्यों कही कि तुम्हारे युद्ध किए बिना भी ये प्रतिपक्षी नहीं रहेंगे? इसका समाधान है कि अगर अर्जुन युद्ध करते तो केवल प्रतिपक्षियों को ही मारते और युद्ध नहीं करते तो प्रतिपक्षियों को नहीं मारते। अतः भगवान कहते हैं कि तुम्हारे मारे बिना भी ये प्रतिपक्षी नहीं बचेंगे; क्योंकि मैं कालरूप से सबको खा जाऊँगा। तात्पर्य यह है कि इन सबका संहार तो होने वाला ही है, तुम केवल अपने युद्ध रूप कर्तव्य का पालन करो। एक शंका यह भी होती है कि यहाँ भगवान अर्जुन से कहते हैं कि प्रतिपक्ष के योद्धा लोग तुम्हारे युद्ध किए बिना भी नहीं रहेंगे, फिर इस युद्ध में प्रतिपक्ष के अश्वत्थामा आदि योद्धा कैसे बच गए? इसका समाधान है कि यहाँ भगवान ने उन्हीं योद्धाओं के मरने की बात कही है, जिनको अर्जुन मार सकते हैं और जिनको अर्जुन आगे मारेंगे। अतः भगवान के कथन का तात्पर्य है कि जिन योद्धाओं को तुम मार सकते हो, वे सभी तुम्हारे मारे बिना ही मर जाएंगे। जिनको तुम आगे मारोगे, वे मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए हैं- ‘मयैवैते निहताः पूर्वमेव’।[1] संबंध- पूर्वश्लोक में भगवान ने कहा था कि तुम्हारे मारे बिना भी ये प्रतिपक्षी योद्धा नहीं रहेंगे। ऐसी स्थिति में अर्जुन को क्या करना चाहिए- इसका उत्तर आगे के दो श्लोक में देते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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