श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
संजय ने विश्वरूप के लिए प्रार्थना भी नहीं की और विश्वरूप को देख लिया। परंतु विश्वरूप देखने के लिए अर्जुन को स्वयं भगवान ने ही उत्कण्ठित किया और अपना विश्वरूप भी दिखाया, क्योंकि संजय की अपेक्षा भगवान के तत्त्व को जानने में अर्जुन छोटे थे और भगवान के साथ सखाभाव रखते थे। इसलिए अर्जुन पर भगवान की कृपा अधिक थी। इस कृपा के कारण अंत में अर्जुन का मोह नष्ट हो गया- ‘नष्टो मोहः......त्वत्प्रसादात्’।[1] इससे सिद्ध होता है कि कृपापात्र का मोह अंत में नष्ट हो ही जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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