श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम् । अर्थ- जिसके अनेक मुख और नेत्र हैं, अनेक तरह के अद्भुत दर्शन हैं, अनेक दिव्य आभूषण हैं और हाथों में उठाए हुए अनेक दिव्य आयुध हैं तथा जिनके गले में दिव्य मालाएँ हैं, जो दिव्य वस्त्र पहने हुए हैं जिनके ललाट तथा शरीर पर दिव्य चन्दन आदि लगा हुआ है, ऐसे संपूर्ण आश्चर्यमय, अनन्तरूप वाले तथा चारों तरफ मुख वाले देव[1] को भगवान ने दिखाया। व्याख्या- ‘अनेकवक्त्रनयनम्’- विराट रूप से प्रकट हुए भगवान के जितने मुख और नेत्र दिख रहे हैं, वे सब-के-सब दिव्य हैं। विराट रूप में जितने प्राणी दिख रहे हैं, उनके मुख, नेत्र, हाथ, पैर आदि सब-के-सब अंग विराट रूप भगवान के हैं। कारण कि भगवान स्वयं ही विराट रूप से प्रकट हुए हैं। ‘अनेकाद्भुतदर्शनम्’- भगवान के विराट रूप में जितने रूप दिखते हैं, जितनी आकृतियाँ दिखती हैं, जितने रंग दिखते हैं, जितनी उनकी विचित्र रूप से बनावट दिखती है, सह सब-की-सब अद्भुत दिख रही है। ‘अनेकदिव्याभरणम्’- विराट रूप में दिखने वाले अनेक रूपों के हाथों में, पैरों में, कानों में, नाकों में और गलों में जितने गहने हैं, आभूषण हैं, वे सब के सब दिव्य हैं। कारण कि भगवान स्वयं ही गहनों के रूप में प्रकट हुए हैं। ‘दिव्यानेकोद्यतायुधम्’- विराट रूप भगवान ने अपने हाथों में चक्र, गदा, धनुष, बाण, परिघ आदि अनेक प्रकार के जो आयुध (अस्त्र-शस्त्र) उठा रखे हैं, वे सब-के-सब दिव्य हैं। ‘दिव्यमाल्याम्बरधरम्’- विराट रूप भगवान ने गले में फूलों की, सोने की, चाँदी की, मोतियों की, रत्नों की, गुंजाओं आदि की अनेक प्रकार की मालाएँ धारण कर रखी हैं। वे सभी दिव्य हैं। उन्होंने अपने शरीरों पर लाल, पीले, हरे, सफेद, कपिश आदि अनेक रंगों के वस्त्र पहन रखे हैं, जो सभी दिव्य हैं। ‘दिव्यगन्धानुलेपनम्’- विराट रूप भगवान ने ललाट पर कस्तूरी, चन्दन, कुंकुम आदि गंध के जितने तिलक किए हैं तथा शरीर पर जितने लेप किए हैं, वे सब-के-सब दिव्य हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अपने दिव्य स्वरूप
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