श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
इसके विपरीत यदि कोई संकोचपूर्वक कम मांगता है, तो देने वाला उदारतापूर्वक अधिक देता है। ऐसे ही वहाँ अर्जुन ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि आप सबकी सब विभूतियाँ कह दीजिए तो भगवान ने कहा कि मैं अपनी विभूतियों को संक्षेप से कहूँगा। इस बात को लेकर अर्जुन सावधान हो जाते हैं कि अब मेरे कहने में ऐसी कोई अनुचित बात न आ जाए। इसलिए अर्जुन यहाँ संकोचपूर्वक कहते हैं कि अगर मेरे द्वारा आपका विराट रूप देखा जा सकता तो दिखा दीजिए। अर्जुन के इस संकोच को देखकर भगवान बड़ी उदारतापूर्वक कहते हैं कि तू मेरे सैकड़ों-हजारों रूपों को देख ले। दूसरा भाव यह है कि अर्जुन के रथ में एक जगह बैठे हुए भगवान ने यह कहा कि ‘तू जो मेरे इस शरीर को देख रहा है, इसके किसी एक अंश में संपूर्ण जगत[3] व्याप्त हैं।’ तात्पर्य है कि भगवान का छोटा-सा शरीर है और उस छोटे-से शरीर के किसी एक अंश में संपूर्ण जगत है। अतः उस एक अंश में स्थित रूप को मैं देखना चाहता हूँ- यही अर्जुन के ‘रूपम्’ (एक रूप) कहने का आशय मालूम देता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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