श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
भगवान ने बीसवें श्लोक से लेकर 39वें श्लोक तक जितनी विभूतियाँ कही हैं, उनमें प्रायः ‘अस्मि’ (मैं हूँ) पद का प्रयोग किया है। केवल तीन जगह- 24वें और 27वें श्लोक में ‘विद्धि’ तथा यहाँ 41वें श्लोक में ‘अवगच्छ’ पद का प्रयोग करके ‘जानने’ की बात कही है। ‘अस्मि’ (मैं हूँ) पद का प्रयोग करने का तात्पर्य विभूतियों के मूल तत्त्व का लक्ष्य कराने में है कि इन सब विभूतियों के मूल में मैं ही हूँ। कारण कि सत्रहवें श्लोक में अर्जुन ने पूछा था कि मैं आपको कैसे जानूँ, तो भगवान ने ‘अस्मि’ का प्रयोग करके सब विभूतियों में अपने को जानने की बात कही। दो जगह ‘विद्धि’ पद का प्रयोग करने का तात्पर्य मनुष्य को सावधान, सावचेत कराने में है। मनुष्य दो के द्वारा सावचेत होता है- ज्ञान के द्वारा और शासन के द्वारा। ज्ञान गुरु के द्वारा प्राप्त होता है और शासन स्वयं राजा करता है। अतः चौबीसवें श्लोक में जहाँ गुरु बृहस्पति का वर्णन आया है, वहाँ ‘विद्धि’ कहने का तात्पर्य है कि तुम लोग गुरु के द्वारा मेरी विभूतियों के तत्त्व को ठीक तरह से समझो। विभूतियों के तत्त्व को समझने का फल है- मेरे में दृढ़ भक्ति होना।[1] सत्ताईसवें श्लोक में जहाँ राजा का वर्णन आया है, वहाँ ‘विद्धि’ कहने का तात्पर्य है कि तुम लोग राजा के शासन द्वारा उन्मार्ग से बचकर सन्मार्ग में लगना अर्थात अपना जीवन शुद्ध बनाना समझो। गुरु प्रेम से समझाता है और राजा बल से, भय से समझाता है। गुरु के समझाने में उद्धार की बात मुख्य रहती है और राजा के समझाने में लौकिक मर्यादा का पालन करने की बात मुख्य रहती है। सत्ताईसवें श्लोक में जो ‘उच्चैःश्रवा’ और ‘ऐरावत’ का वर्णन आया है, वे दोनों राजा के वैभव के उपलक्षण हैं। कारण कि घोड़े, हाथी आदि राजा के ऐश्वर्य हैं और ऐश्वर्यवान राजा ही शासन करता है। इसलिए उस श्लोक में ‘विद्धि’ पद का प्रयोग खास करके राजा के लिए ही किया हुआ मालूम देता है। यहाँ इकतालीसवें श्लोक में जो ‘अवगच्छ’ पद आया है, उसका अर्थ है- वास्तविकता से समझना कि जो कुछ भी विशेषता दिखती है, वह वस्तुतः भगवान की ही है। इस प्रकार दो बार ‘विद्धि’ और एक बार ‘अवगच्छ’ पद देने का तात्पर्य यह है कि गुरु और राजा के द्वारा समझाने पर भी जब तक मनुष्य स्वयं उनकी बात को वास्तविकता से नहीं समझेगा, उनकी बात को नहीं मानेगा, तब तक गुरु का ज्ञान और राजा का शासन उसके काम नहीं आएगा। अंत में तो स्वयं को ही मानना पड़ेगा और वही वही उसके काम आयेगा। संबंध- यहाँ तक अर्जुन के प्रश्नों का उत्तर देकर अब भगवान अपनी तरफ से खास बात बताते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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