श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम् । अर्थ- सबका हरण करने वाली मृत्यु और उत्पन्न होने वालों का उद्भव मैं हूँ तथा स्त्री जाति में कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा मैं हूँ। व्याख्या- ‘मृत्युः सर्वहरश्चाहम्’- मृत्यु में हरण करने की ऐसी विलक्षण सामर्थ्य है कि मृत्यु के बाद यहाँ की स्मृति तक नहीं रहती, सब कुछ अपहृत हो जाता है। वास्तव में यह सामर्थ्य मृत्यु की नहीं, प्रत्युत परमात्मा की है। अगर संपूर्ण का हरण करने की, विस्मृत करने की भगवत्वप्रदत्त सामर्थ्य मृत्यु न होती तो अपनेपन के संबंध को लेकर जैसी चिन्ता इस जन्म में मनुष्य को होती है, वैसी ही चिन्ता पिछले जन्म के संबंध को लेकर भी होती। मनुष्य न जाने कितने जन्म ले चुका है। अगर उन जन्मों की याद रहती है तो मनुष्य की चिन्ताओं का, उसके मोह का कभी अंत आता ही नहीं। परंतु मृत्यु के द्वारा विस्मृति होने से पूर्वजन्मों के कुटुम्ब, संपत्ति आदि की चिन्ता नहीं होती। इस तरह मृत्यु में जो चिन्ता, मोह मिटाने की सामर्थ्य है, वह सब भगवान की ही है। उद्भवश्च भविष्यताम्- जैसे पूर्वश्लोक में भगवान ने बताया कि सबका धारण-पोषण करने वाला मैं ही हूँ, वैसे ही यहाँ बताते हैं कि सब उत्पन्न होने वालों की उत्पत्ति का हेतु भी मैं ही हूँ। तात्पर्य है कि संसार की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय करने वाला मैं ही हूँ। ‘कीर्तिः श्रीर्वाश्क नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा’- कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा- ये सातों संसारभर की स्त्रियों में श्रेष्ठ मानी गया हैं। इनमें से कीर्ति, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा- ये पाँच प्रजापति दक्ष की कन्याएँ हैं, ‘श्री’ महर्षि भृगु की कन्या है और ‘वाक्’ ब्रह्मा जी की कन्या है। कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा- ये सातों स्त्रीवाचक नाम वाले गुण भी संसार में प्रसिद्ध हैं। सद्गुणों को लेकर संसार में जो प्रसिद्धि है, प्रतिष्ठा है, उसे ‘कीर्ति’ कहते हैं। स्थावर और जंगम- यह दो प्रकार का ऐश्वर्य होता है। जमीन, मकान, धन, संपत्ति आदि स्थावर ऐश्वर्य है और गाय, भैंस, घोड़ा, ऊँट, हाथी आदि जंगम ऐश्वर्य हैं। इन दोनों ऐश्वर्यों को ‘श्री’ कहते हैं। जिस वाणी को धारण करने से संसार में यश-प्रतिष्ठा होती है और जिससे मनुष्य पंडित, विद्वान कहलाता है, उसे ‘वाक्’ कहते हैं। पुरानी सुनी-समझी बात की फिर याद आने का नाम ‘स्मृति’ है। बुद्धि की जो स्थायी रूप से धारण करने की शक्ति है अर्थात जिस शक्ति से विद्या ठीक तरह से याद रहती है, उस शक्ति का नाम ‘मेधा’ है। मनुष्य को अपने सिद्धांत, मान्यता आदि पर डटे रखने तथा उनसे विचलित न होने देने की शक्ति का नाम ‘धृति’ है। |
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