श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
संसार में जो कुछ भी विशेषता दिखती है, उसको संसार की मानने से मनुष्य उसमें फँस जाता है, जिससे उसका पतन होता है। परंतु भगवान यहाँ बहुत ही सरल साधन बताते हैं कि तुम्हारा मन जहाँ-कहीं और जिस-किसी विशेषता को लेकर आकृष्ट होता है, वहाँ उस विशेषता को तुम मेरी समझो कि यह विशेषता भगवान की है और भगवान से ही आयी है, यह इस परिवर्तनशील नाशवान संसार की नहीं है। ऐसा समझोगे, मानोगे तो तुम्हारा वह आकर्षण मेरे में ही होगा। तुम्हारे मन में मेरी ही महत्ता हो जाएगी। इससे संसार का चिन्तन छूटकर मेरा ही चिन्तन होगा, जिससे तुम्हारा मेरे में प्रेम हो जाएगा। |
संबंधित लेख
श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज