श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् । अर्थ- हे पार्थ! पुरोहितों में मुख्य बृहस्पति को मेरा स्वरूप समझो। सेनापतियों में स्कन्द और जलाशयों में समुद्र मैं हूँ। व्याख्या- ‘पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्’- संसार के संपूर्ण पुरोहितों में और विद्या बुद्धि में बृहस्पति श्रेष्ठ हैं। ये इंद्र के गुरु तथा देवताओं के कुलपुरोहित हैं। इसलिए भगवान ने अर्जुन से बृहस्पति को अपनी विभूति जानने (मानने) के लिए कहा है। ‘सेनानीनामहं स्कन्दः’- स्कन्द (कार्तिकेय) शंकर जी के पुत्र हैं। इनके छः मुख और बारह हाथ हैं। ये देवताओं के सेनापति हैं और संसार के संपूर्ण सेनापतियों में श्रेष्ठ हैं। इसलिए भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। ‘सरसामस्मि सागरः’- इस पृथ्वी पर जितने जलाशय हैं, उनमें समुद्र सबसे बड़ा है। समुद्र संपूर्ण जलाशयों का अधिपति है और अपनी मर्यादा में रहने वाला तथा गंभीर है। इसलिए भगवान ने इसको अपनी विभूति बताया है। यहाँ इन विभूतियों की जो अलौकिकता दिखती है, यह उनकी खुद की नहीं है, प्रत्युत भगवान की है और भगवान से ही आयी है। अतः इनको देखने पर भगवान की ही स्मृति होनी चाहिए। |
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