श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः । अर्थ- मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवताओं में इंद्र हूँ, इंद्रियों में मन हूँ और प्राणियों की चेतना हूँ। व्याख्या- ‘वेदानां सामवेदोऽस्मि’- वेदों की जो ऋचाएँ स्वरसहित गायी जाती हैं, उनका नाम सामवेद है। सामवेद में इंद्ररूप से भगवान की स्तुति का वर्णन है। इसलिए सामवेद भगवान की विभूति है। ‘देवानामस्मि वासवः’- सूर्य, चंद्रमा आदि जितने भी देवता हैं, उन सबमें इंद्र मुख्य है और सबका अधिपति है। इसलिए भगवान ने उसको अपनी विभूति बताया है। ‘इंद्रियाणां मनश्चास्मि’- नेत्र, कान आदि सब इंद्रियों में मन मुख्य है। सब इंद्रियाँ मन के साथ रहने से (मन को साथ में लेकर) ही काम करती हैं। मन साथ में न रहने से इंद्रियाँ अपना काम नहीं करतीं। यदि मन का साथ न हो तो इंद्रियों के सामने विषय आने पर भी विषयों का ज्ञान नहीं होता। मन में यह विशेषता भगवान से ही आयी है। इसलिए भगवान ने मन को अपनी विभूति बताया है। ‘भूतानामस्मि चेतनां’- संपूर्ण प्राणियों की जो चेतना-शक्ति, प्राणशक्ति है, जिससे मरे हुए आदमी की अपेक्षा सोये हुए आदमी में विलक्षणता दिखती है, उसे भगवान ने अपनी विभूति बताया है। इन विभूतियों में जो विशेषता है, वह भगवान से ही आयी है। इनकी स्वतंत्र विशेषता नहीं है। |
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