श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
‘येषां लोकमिमाः प्रजाः’- संसार में दो तरह की प्रजा है- स्त्री-पुरुष के संयोग से उत्पन्न होने वाली और शब्द से[1] उत्पन्न होने वाली। संयोग से उत्पन्न होने वाली प्रजा ‘बिंदुज’ कहलाती है और शब्द से उत्पन्न होने वाली प्रजा ‘नादज’ कहलाती है। बिंदुज प्रजा पुत्र- परंपरा से और नादज प्रजा शिष्य- परंपरा से चलती है। सप्तर्षियों और चौदह मनुओं ने तो विवाह किया था; अतः उनसे उत्पन्न होने वाली प्रजा ‘बिंदुज’ है। परंतु सनकादियों ने विवाह किया ही नहीं; अतः उनसे उपदेश प्राप्त करके पारमार्थिक मार्ग में लगने वाली प्रजा ‘नादज’ है। निवृत्तिपरायण होने वाले जितने संत-महापुरुष पहले हुए हैं, अभी हैं और आगे होंगे, वे सब उपलक्षण से उनकी ही नादज प्रजा हैं। संबंध- चौथे से छठे श्लोक तक प्राणियों के भावों तथा व्यक्तियों के रूप में अपनी विभूतियों का और अपने योग (प्रभाव) का वर्णन करके अब भगवान आगे के श्लोक में उनको तत्त्व से जानने का फल बताते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दीक्षा, मंत्र, उपदेश आदि से
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