श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा । अर्थ- सात महर्षि और उनसे भी पूर्व में होने वाले चार सनकादि तथा चौदह मनु- ये सब-के-सब मेरे मन से पैदा हुए हैं और मेरे में भाव (श्रद्धा-भक्ति) रखने वाले हैं, जिनकी संसार में यह संपूर्ण प्रजा है। व्याख्या- [पीछे के दो श्लोक में भगवान ने प्राणियों के भाव रूप से बीस विभूतियाँ बतायीं। अब इस श्लोक में व्यक्ति-रूप से पच्चीस विभूतियाँ बता रहे हैं, जो कि प्राणियों में विशेष प्रभावशाली और जगत के कारण हैं।] ‘महर्षयः सप्त’- जो दीर्घ आयु वाले; मंत्रों को प्रकट करने वाले; ऐश्वर्यवान; दिव्य दृष्टि वाले; गुण, विद्या आदि से वृद्ध; धर्म का साक्षात करने वाले; और गोत्रों के प्रवर्तक हैं- ऐसे सातों गुणों से युक्त ऋषि सप्तर्षि कहे जाते हैं।[1] मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु और वसिष्ठ- ये सातों ऋषि उपर्युक्त सातों ही गुणों से युक्त हैं। ये सातों ही वेदवेत्ता हैं, वेदों के आचार्य माने गए हैं, प्रवृत्ति-धर्म का संचालन करने वाले हैं और प्रजापति के कार्य में नियुक्त किए गए हैं[2]। ‘पूर्वे चत्वारः’- सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार- ये चारों ही ब्रह्मा जी के तप करने पर सबसे पहले प्रकट हुए हैं। ये चारों भगवत्स्वरूप हैं। सबसे पहले प्रकट होने पर भी ये चारों सदा पाँच वर्ष की अवस्था वाले बालक रूप में ही रहते हैं। ये तीनों लोकों में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का प्रचार करते हुए घूमते रहते हैं। इनकी वाणी से सदा ‘हरिः शरणम्’ का उच्चारण होता रहता है[3]। ये भगवत्कथा के बहुत प्रेमी हैं। अतः इन चारों में से एक वक्ता और तीन श्रोता बनकर भगवत्कथा करते और सुनते रहते हैं। ‘मनवस्तथा’- ब्रह्मा जी के एक दिन (कल्प) में चौदह मनु होते हैं। ब्रह्मा जी के वर्तमान कल्प के स्वायम्भु, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, सावर्णि, दक्षसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, धर्मसावर्णि, रुद्रसावर्णि, देवसावर्णि और इंद्रसावर्णि नाम वाले चौदह मनु हैं[4]। ये सभी ब्रह्मा जी की आज्ञा से सृष्टि के उत्पादक और प्रवर्तक हैं। ‘मानसा जाताः’- मात्र सृष्टि भगवान के संकल्प से पैदा होती है। परंतु यहाँ सप्तर्षि आदि को भगवान के मन से पैदा हुआ कहा है। इसका कारण यह है कि सृष्टि का विस्तार करने वाले होने से सृष्टि में इनकी प्रधानता है। दूसरा कारण यह है कि ये सभी ब्रह्मा जी के मन से अर्थात संकल्प से पैदा हुए हैं। स्वयं भगवान ही सृष्टि-रचना के लिए ब्रह्मरूप से प्रकट हुए हैं। अतः सात महर्षि, चार सनकादि और चौदह मनु- इन पच्चीसों को ब्रह्मा जी के मानसपुत्र कहें अथवा भगवान के मानसपुत्र कहें, एक ही बात है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सप्तैते सप्तभिश्चैव गुणैः सप्तर्षयः स्मृताः ।।
दीर्घायुषो मंत्रकृत ईश्वरा दिव्यचक्षुषः। वृद्धाः प्रत्यक्षधर्माणो गोत्रप्रवर्तकाश्च ये ।। (वायु पुराण 61।93-94) - ↑ मरीचिरग्राश्चात्रिः पुलस्त्यः पुलहः क्रतुः। वसिष्ठ इति सप्तैते मानसा निर्मिता हि ते ।।
एते वेदविदो मुख्या वेदाचार्याश्च कल्पिताः। प्रवृत्तिधर्मिणश्चैव प्राजापत्ये च कल्पिताः ।। (महा. शांतिपर्व. 347।69-70) - ↑ हरिः शरणमेवं हि नित्यं येषां मुखे वचः। (पद्यपुराणोक्त श्रीमद्भागवत-माहात्म्य 2।48)
- ↑ श्रीमद्भागवत के आठवें स्कन्ध के पहले, पाँचवें और तेरहवें अध्याय में इनका विस्तार से वर्णन आया है।
ब्रह्मा जी का एक दिन एक हजार चतुर्युगी का होता है। उसमें एक मनु का राज्य इकहत्तर चतुर्युगी से कुछ ज्यादा समय का माना गया है। इस समय ब्रह्मा जी की आयु का इक्यानवाँ वर्ष चल रहा है और इसमें सातवें मनु ‘वैवस्वत’ का राज्य चल रहा है।
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