श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहःक्षमा सत्यं दमः शमः । अर्थ- बुद्धि, ज्ञान, असम्मोह, क्षमा, सत्य, दम, शम, सुख, दुःख, भव, अभाव, भय, अभय, अहिंसा, समता, तुष्टि, तप, दान, यश और अपयश- प्राणियों के ये अनेक प्रकार के और अलग-अलग (बीस) भाव मेरे से ही होते हैं। व्याख्या- ‘बुद्धि’- उद्देश्य को लेकर निश्चय करने वाली वृत्ति का नाम ‘बुद्धि’ है। ‘ज्ञानम्’- सार-असार, ग्राह्य-अग्राह्य, नित्य-अनित्य, सत्-असत्, उचित-अनुचित, कर्तव्य-अकर्तव्य- ऐसा जो विवेक अर्थात अलग-अलग जानकारी है, उसका नाम ‘ज्ञान’ है। यह ज्ञान (विवेक) मानवमात्र को भगवान से मिला है। ‘असम्मोहः’- शरीर और संसार को उत्पत्ति-विनाशशील जानते हुए भी उनमें ‘मैं’ और ‘मेरा’ –पन करने का नाम सम्मोह है और इसके न होने का नाम ‘असम्मोह’ है। ‘क्षमा’- कोई हमारे प्रति कितना ही बड़ा अपराध करे, अपनी सामर्थ्य रहते हुए भी उसे सह लेना और उस अपराधी को अपनी तथा ईश्वर की तरफ से यहाँ और परलोक में कहीं भी दंड न मिले- ऐसा विचार करने का नाम ‘क्षमा’ है। ‘सत्यम्’- सत्यस्वरूप परमात्मा की प्राप्ति के लिए सत्यभाषण करना अर्थात जैसा सुना, देखा और समझा है, उसी के अनुसार अपने स्वार्थ और अभिमान त्याग करके दूसरों के हित के लिए न ज्यादा, न कम- वैसा-का-वैसा कह देने का नाम ‘सत्य’ है। ‘दमः शमः’- परमात्मा की प्राप्ति का उद्देश्य रखते हुए इंद्रियों को अपने-अपने विषयों से हटाकर अपने वश में करने का नाम ‘दम’ है, और मन को सांसारिक भोगों के चिन्तन से हटाने का नाम ‘शम’ है। ‘सुखं दुःखम्’- शरीर, मन, इंद्रियों के अनुकूल परिस्थिति के प्राप्त होने पर हृदय में जो प्रसन्नता होती है, उसका नाम ‘सुख’ है और प्रतिकूल परिस्थिति के प्राप्त होने पर हृदय में जो अप्रसन्नता होती है, उसका नाम ‘दुःख’ है। ‘भवोऽभावः’- सांसारिक वस्तु, व्यक्ति, घटना, परिस्थिति, भाव आदि के उत्पन्न होने का नाम ‘भव’ है और इन सबके लीन होने का नाम ‘अभाव’ है। ‘भयं चाभयमेव च’- अपने आचरण, भाव आदि शास्त्र और लोक-मर्यादा के विरुद्ध होने से अंतःकरण में अपना अनिष्ट होने की जो एक आशंका होती है, उसको ‘भय’ कहते हैं। मनुष्य के आचरण, भाव आदि अच्छे हैं, वह किसी को कष्ट नहीं पहुँचाता, शास्त्र और संतों के सिद्धांत से विरुद्ध कोई आचरण नहीं करता, तो उसके हृदय में अपना अनिष्ट होने की आशंका नहीं रहती अर्थात उसको किसी से भय नहीं होता। इसी को ‘अभय’ कहते हैं। ‘अहिंसा’- अपने तन, मन और वचन से किसी भी देश, काल, परिस्थिति आदि में किसी भी प्राणी को किञ्चिन्मात्र भी दुःख न देने का नाम ‘अहिंसा’ है। |
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