श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः । अर्थ- मेरे प्रकट होने को न देवता जानते हैं और न महर्षि; क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं और महर्षियों का आदि हूँ। व्याख्या- ‘न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः’- यद्यपि देवताओं के शरीर, बुद्धि, लोक, सामग्री आदि सब दिव्य हैं, तथापि वे मेरे प्रकट होने को नहीं जानते। तात्पर्य है कि मेरा जो विश्वरूप से प्रकट होना है, मत्स्य, कच्छप आदि अवतार रूप से प्रकट होना है, सृष्टि में क्रिया, भाव और विभूतिरूप से प्रकट होना है, ऐसे मेरे प्रकट होने के उद्देश्य को, लक्ष्य को, हेतुओं को देवता भी पूरा-पूरा नहीं जानते। मेरे प्रकट होने को पूरा-पूरा जानना तो दूर रहा, उनको तो मेरे दर्शन भी बड़ी कठिनता से होते हैं। इसलिए वे मेरे दर्शन के लिए हरदम लालायित रहते हैं।[1] ऐसे ही जिन महर्षियों ने अनेक ऋचाओं को, मंत्रों को, विद्याओं को, विलक्षण-विलक्षण शक्तियों को प्रकट किया है, जो संसार से ऊँचे उठे हुए हैं, जो दिव्य अनुभव से युक्त हैं, जिनके लिए कुछ करना, जानना और पाना बाकी नहीं रहा है, ऐसे तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महर्षि लोग भी मेरे प्रकट होने को अर्थात मेरे अवतारों को, अनेक प्रकार की लीलाओं को, मेरे महत्त्व को पूरा-पूरा नहीं जानते। यहाँ भगवान ने देवता और महर्षि- इन दोनों का नाम लिया है। इसमें ऐसा मालूम देता है कि ऊँचे पद की दृष्टि से देवता का नाम और ज्ञान की दृष्टि से महर्षि का नाम लिया गया है। इन दोनों का मेरे प्रकट होने को न जानने में कारण यह है कि मैं देवताओं और महर्षियों का सब प्रकार से आदि हूँ- ‘अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः।’ उनमें जो कुछ बुद्धि है, शक्ति है, सामर्थ्य है, पद है, प्रभाव है, महत्ता है, वह सब उन्होंने मेरे से ही प्राप्त की है। अतः मेरे से प्राप्त किए हुए प्रभाव, शक्ति, सामर्थ्य आदि से वे मेरे को पूरा कैसे जान सकते हैं? अर्थात नहीं जान सकते। जैसे बालक जिस माँ से पैदा हुआ है, उस माँ के विवाह को और अपने शरीर के पैदा होने को नहीं जानता, ऐसे ही देवता और महर्षि मेरे से ही प्रकट हुए हैं; अतः वे मेरे प्रकट होने को और अपने कारण को नहीं जानते। कार्य अपने कारण में लीन तो हो सकता है, पर उसको जान नहीं सकता। ऐसे ही देवता और महर्षि मेरे से उत्पन्न होने से, मेरा कार्य होने से कारणरूप मेरे को नहीं जान सकते, प्रत्युत मेरे में लीन हो सकते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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