श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
प्रथम अध्याय
सम्बन्ध- अर्जुन के इस प्रकार कहने पर भगवान् ने क्या किया? अब दो श्लोकों में संजय उसका वर्णन करते हैं-
उत्तर- ‘गुडाका’ निद्रा को कहते हैं; जो नींद को जीतकर उस पर अधिकार कर ले, उसे ‘गुडाकेश’ कहते हैं। अर्जुन ने निद्रा जीत ली थी, वे बिना सोये रह सकते थे। नींद उन्हें सताती नहीं थी, आलस्य के वश तो वे कभी होते ही न थे। संजय ‘गुडाकेश’ कहकर यह सूचित कर रहे हैं कि जो अर्जुन सदा इतने सावधान और सजग हैं, उन्हें आपके पुत्र कैसे जीत सकेंगे? प्रश्न- युद्ध के लिये जुटे हुए इन कौरवों को देख, भगवान् के इस कथन का क्या अभिप्राय है? उत्तर- इससे भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि तुमने जो यह कहा था कि जब तक मैं सबको देख न लूँ तब तक रथ वहीं खड़ा रखियेगा, उसके अनुसार मैंने सबके बीच में ऐसी जगह रथ को लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ से तुम सबको भली-भाँति देख सको। रथ स्थिर-भाव से खड़ा है, अब तुम जितनी देर तक चाहो सबको भली-भाँति देख लो। यहाँ ‘करुन् दृश्य’ अर्थात् ‘कौरवों को देखो’ इन शब्दों का प्रयोग करके भगवान् ने यह भाव भी दिखलाया है कि ‘इस सेना में जितने लोग हैं, प्रायः सभी तुम्हारे वंश के तथा आत्मीय स्वजन ही हैं। उनको तुम अच्छी तरह देख लो।’ भगवान् के इसी संकेत ने अर्जुन के अन्तःकरण में छिपे हुए कुटुम्ब स्नेह को प्रकट कर दिया। अर्जुन के मन में बन्धुस्नेह उत्पन्न करुणाजनित कायरता प्रकट करने के लिये ये शब्द मानो बीजरूप हो गये। मालूम होता है कि अर्जुन को निमित्त बनाकर लोककल्याण करने के लिये स्वयं भगवान् ने ही इन शब्दों के द्वारा उनके हृदय में ऐसी भावना उत्पन्न कर दी, जिससे उन्होंने युद्ध करने से इनकार कर दिया और उसके फलस्वरूप साक्षात् भगवान् के मुखारविन्द से त्रिलोकपावन दिव्य गीतामृत की ऐसी परम धारा बह निकली, जो अनन्त काल तक अनन्त जीवों का परमकल्याण करती रहेगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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