श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
तृतीय अध्याय
प्रश्न - कामरूप वैरी को दुर्जय बतलाने का क्या अभिप्राय है? उत्तर - वस्तुतः काम में कोई बल नहीं है। यह आत्मा के बल से बलवान् हुए बुद्धि, मन और इन्द्रियों में रहने के लिये जगह पा जाने के कारण ही उनके बल से बलवान् हो गया है तथा जब तक बुद्धि, मन और इन्द्रिय अपने वश में नहीं हो जाते, तब तक उनके द्वारा आत्मा का बल काम को प्राप्त होता रहता है। इसीलिये काम अत्यन्त प्रबल माना जाता है और इसीलिये उसे ‘दुर्जय’ कहा गया है; परंतु काम का यह दुर्जयत्व तभी तक है जब तक आत्मा अपने स्वरूप् को पहचानकर बुद्धि, मन और इन्द्रिय को अपने वश में न कर ले। प्रश्न - यहाँ ‘महाबाहो’ सम्बोधन किस अभिप्राय से दिया गया है? उत्तर- ‘महाबाहो’ शब्द बड़ी भुजा वाले बलवान का वाचक है और यह शौर्य सूचक शब्द है। भगवान् श्रीकृष्ण काम को ‘दुर्जय’ बतलाकर उसे मारने की आज्ञा देते हुए अर्जुन को ‘महाबाहो’ नाम से सम्बोधित कर आत्मा के अनन्त बल की याद दिला रहे हैं और साथ ही यह भी सूचित कर रहे हैं कि ‘समस्त अनन्ताचिन्त्य-दिव्यशाक्तियों का अनन्त भण्डार मैं- जिसकी शक्ति का क्षुद्र-सा अंश पाकर देवता और लोकपाल समस्त विश्व का संचालन करते हैं और जिसकी शक्ति के करोड़वें कलांश-भाग को पकार जीव अनन्त शक्ति वाला बन सकता है- वह स्वयं मैं जब तुम्हें काम को मारने में समर्थ शक्ति सम्पन्न मानकर आज्ञा दे रहा हूँ, तब काम कितना ही दुर्जय और दुर्धर्ष वैरी क्यों न हो, तुम बड़ी आसानी से उसे मारकर उस पर विजय प्राप्त कर सकते हो।’ इसी अभिप्राय से यह सम्बोधन दिया गया है। ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भवदगीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्यायः ।। 3 ।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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