श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
तृतीय अध्याय
उत्तर- भगवान् के निगुर्ण-निराकार तत्त्व के प्रभाव, माहात्म्य और रहस्य से युक्त यथार्थ ज्ञान को ‘ज्ञान’ तथा सगुण-निराकर और दिव्य साकार तत्त्व के लीला, रहस्य, गुण, महत्त्व और प्रभाव से युक्त यथार्थ ज्ञान को ‘विज्ञान’ कहते हैं। इस ज्ञान और विज्ञान की यथार्थ प्राप्ति के लिये हृदय में जो आकांक्षा उत्पन्न होती है, उसको यह महान् कामरूप शत्रु अपनी मोहनी शक्ति के द्वारा नित्य-निरन्तर दबाता रहता है अर्थात् उस आकांक्षा की जागृति से उत्पन्न ज्ञान-विज्ञान के साधनों में बाधा पहुँचाता रहता है, इसी कारण ये प्रकट नहीं हो पाते, इसीलिये काम को उनका नाश करने वाला बतलाया गया है। ‘नाश’ शब्द के दो अर्थ होते हैं- एक तो अप्रकट कर देना और दूसरा वस्तु का अभाव कर देना; यहाँ अप्रकट कर देने के अर्थ में ही ‘नाश’ शब्द का प्रयोग हुआ है; क्योंकि पूर्व श्लोकों में भी ज्ञान को काम से आवृत (ढका हुआ) बतलाया गया है। ज्ञान और विज्ञान को समूल नष्ट करने की तो काम में शक्ति नहीं है, क्योंकि काम की उत्पत्ति अज्ञान से हुई है अतः ज्ञान-विज्ञान के एक बार प्रकट हो जाने पर तो अज्ञान का ही समूल नाश हो जाता है, फिर तो ज्ञान-विज्ञान के नाश का कोई प्रश्न ही नहीं रह जाता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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