श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
तृतीय अध्याय
उत्तर- ‘तस्मात् पद हेतुवाचक है, इसके सहित ‘आदौ’ पद का प्रयोग करके इन्द्रियों को वश में करने के लिये कहकर भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि ‘काम’ ही समस्त अनर्थों का मूल है और यह पहले इन्द्रियों में प्रविष्ट होकर उनके द्वारा मन-बुद्धि को मोहित करके जीवात्मा को मोहित करता है; इसके निवास स्थान मन और इन्द्रियाँ हैं इसलिये पहले इन्द्रियों पर अपना अधिकार करके इस कामरूप शत्रु को अवश्य मार डालना चाहिये। इसके वास स्थानों को रोक लेने से ही इस कामरूप शत्रु को मारने में सुगमता होगी। अतएव पहले इन्द्रियों को और फिर मन को रोकना चाहिये। प्रश्न- इन्द्रियों को किस उपाय से वश में करना चाहिये? उत्तर- अभ्यास और वैराग्य- इन दो उपायों से इन्द्रियाँ वश में हो सकती हैं- ये ही दो उपाय मन को वश में करने के लिये बतलाये गये हैं।[1] विषय और इन्द्रियों के संयोग से होने वाले राजस-सुख को[2] तथा निद्रा, आलस्य और प्रमादजनित तामस-सुख को[3] वास्तव में क्षणिक, नाशवान् और दुःखरूप समझकर इस लोक और परलोक के समस्त भोगों से विरक्त रहना वैराग्य है। और परमात्मा के नाम, रूप, गुण, चरित्र आदि के श्रवण, कीर्तन, मनन आदि में और निःस्वार्थ भाव से लोक सेवा के कार्यों में इन्द्रियों को लगाना एवं धारण-शक्ति के द्वारा उनकी क्रियाओं को शास्त्र के अनुकूल बनाना तथा उनमें स्वेच्छाचारिता का दोष पैदा न होने देने की चेष्टा करना अभ्यास है। इन दोनों ही उपायों से इन्द्रियों को और मन को वश में किया जा सकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज