तृतीय अध्याय
प्रश्न- यहाँ ‘सयम्य’ पद का अर्थ ‘वश में कर लेना’ मान लिया जाय तो क्या हानि है?
उत्तर- इन्द्रियों को वश में कर लेने वाला मिथ्याचारी नहीं होता; क्योंकि इन्द्रियों को वश में कर लेना तो योग का अंग है। इसलिये यहाँ ‘संयम्य’ का अर्थ जो ऊपर किया गया है, वही ठीक है।
प्रश्न- ‘इन्द्रियार्थान्’ पद किनका वाचक है?
उत्तर- दसों इन्द्रियों के शब्दादि समस्त विषयों का वाचक यहाँ ‘इन्द्रियार्थान्’ पद है। अध्याय पाँच श्लोक नवें में भी इसी अर्थ में ‘इन्द्रियार्थेषु’ पद का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न- वह मिथ्याचारी कहलाता है, इस कथन का क्या भाव है?
उत्तर- इससे यह दिखलाया गया है कि उपर्युक्त प्रकार से इन्द्रियों को रोकने वाला मनुष्य मछलियों को धोखा देने के लिये स्थिर भाव से खड़े रहने वाले कपटी बगुले की भाँति बाहर से दूसरा ही भाव दिखलाता है और मन में दूसरा ही भाव रखता है; अतः उसका आचरण मिथ्या होने से वह मिथ्याचारी है।
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