श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
द्वितीय अध्याय
सम्बन्ध- इस प्रकार मन और इन्द्रियों के संयम न करने में हानि और संयम करने में लाभ दिखलाकर तथा स्थितिप्रज्ञ अवस्था प्राप्त करने के लिये राग-द्वेष के त्यागपूर्वक मनसहित इन्द्रियों के संयम की विशेष आवश्यकता का प्रतिपादन करके स्थितिप्रज्ञ पुरुष की अवस्था का वर्णन किया। अब साधारण विषयासक्त मनुष्यों में और मन-इन्द्रियों का संयम करके परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिरबुद्धि संयमी महापुरुष में क्या अन्तर है, इस बात को रात और दिन के दृष्टान्त से समझाते हुए उनकी स्वाभाविक स्थिति का वर्णन करते हैं-
उत्तर- जो मन और इन्द्रियों को वश में करके परमात्मा को प्राप्त हो गया है, जिसका इस प्रकरण में स्थितप्रज्ञ के नाम से वर्णन हुआ है, उसी का वाचक यहाँ ‘संयमी’ पद है; क्योंकि उत्तरार्द्ध में उसी के लिये ‘पश्यतः’ पद का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ ‘ज्ञानी’ होता है। प्रश्न- यहाँ सम्पूर्ण प्राणियों की रात्रि के समान क्या है और उसमें स्थितप्रज्ञ योगी का जागना क्या है? उत्तर- अज्ञानी और ज्ञानियों के अनुभव में रात और दिन के सदृश अत्यन्त विलक्षणता है, यह भाव दिखलाने के लिये रात्रि के रूपक से साधारण अज्ञानी मनुष्यों की और ज्ञानी की स्थिति का वर्णन किया गया है। इसलिये यहाँ रात्रि का अर्थ सूर्यास्त के बाद होने वाली रात्रि नहीं है, किंतु जैसे प्रकाश से पूर्ण दिन को उल्लू अपने नेत्रदोष से अन्धकारमय देखता है, वैसे ही अनादिसिद्ध अज्ञान के परदे से अन्तःकरण रूप नेत्रों की विवेक-विज्ञान रूप प्रकाशन-शक्ति के आवृत रहने के कारण अविवेकी मनुष्य स्वयं प्रकाश नित्यबोध परमानन्दमय परमात्मा को नहीं देख पाते। उस परमात्मा की प्राप्ति रूप सूर्य के प्रकाशित होने से जो परम शान्ति और नित्य आनन्द का प्रत्यक्ष अनुभव होता है वह वास्तव में दिन की भाँति प्रकाशमय होते हुए भी परमात्मा के गुण, प्रभाव, रहस्य और तत्त्व को न जानने वाले अज्ञानियों के लिये रात्रि है यानी रात्रि के समान है, क्योंकि वे उस ओर से सर्वदा सोये हुए हैं, उनको उस परमानन्द का कुछ पता ही नहीं है, यह परमात्मा की प्राप्ति ही यहाँ सम्पूर्ण प्राणियों की रात्रि है, यही रात्रि परमात्मा को प्राप्त संयमी पुरुष के लिये दिन के समान है। स्थितप्रज्ञ पुरुष का जो उस सच्चिदानन्दघन परमात्मा के स्वरूप को प्रत्यक्ष करके निरन्तर उसी में स्थित रहना है, यही उसका उस सम्पूर्ण प्राणियों की रात्रि में जागना है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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