द्वितीय अध्याय
प्रश्न- भावनाहीन मनुष्य को शान्ति नहीं मिलती, इस कथन का क्या भाव है?
उत्तर- इससे यह दिखलाया गया है कि परम आनन्द और शान्ति के समुद्र परमात्मा का चिन्तन न होने के कारण अयुक्त मनुष्य का चित्त निरन्तर विक्षिप्त रहता है; उसमें राग-द्वेष, काम-क्रोध और लोभ-ईर्ष्या आदि के कारण हर समय जलन और व्याकुलता बनी रहती है। अतएव उसको शान्ति नहीं मिलती।
प्रश्न- शान्तिरहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है? - इस कथन का क्या भाव है?
उत्तर - इससे यह भाव दिखलाया गया है कि चित्त में शान्ति का प्रादुर्भाव हुए बिना कहीं किसी भी अवस्था में किसी भी उपाय से मनुष्य को सच्चा सुख नहीं मिल सकता। विषय और इन्द्रियों के संयोग में तथा निद्रा, आलस्य और प्रमाद में भ्रम से जो सुख की प्रतीति होती है, वह वास्तव में सुख नहीं है, वह तो दुःख का हेतु होने से वस्तुतः दुख ही है।
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