श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टादश अध्याय
उत्तर- इस विशेषण से उस ब्रह्मभूत योगी का समस्त प्राणियों में समभाव दिखलाया गया है। अभिप्राय यह है कि वह किसी भी प्राणी को अपने से भिन्न नहीं समझता- इस कारण उसका किसी में भी विषमभाव नहीं रहता, सबमें समभाव हो जाता है; यही भाव छठे अध्याय के उनतीसवें श्लोक में ‘सर्वत्र समदर्शनः’ पद से दिखलाया गया है। प्रश्न- ‘पराम्’ विशेषण के सहित यहाँ ‘मद्भक्तिम्’ पद किसका वाचक है? उत्तर- जो ज्ञानयोग का फल है, जिसको ज्ञान की परानिष्ठा और तत्त्वज्ञान भी कहते हैं, उसका वाचक यहाँ ‘पराम्’ विशेषण के सहित ‘मद्भक्तिम्’ पद है; क्योंकि वह परमात्मा के यथार्थ स्वरूप का साक्षात् कराकर उनमें अभिन्नभाव से प्रविष्ट करा देता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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