अष्टादश अध्याय
प्रश्न- ‘ब्रह्म’ पद किसका वाचक है और उसको प्राप्त होना क्या है?
उत्तर- नित्य-निर्विकार, निर्गुण-निराकार, सच्चिदानन्दघन, पूर्वब्रह्म परमात्मा वाचक यहाँ ‘ब्रह्म’ पद है और तत्त्वज्ञान के द्वारा पचपनवें श्लोक के वर्णनानुसार अभिन्नभाव से उसमें प्रविष्ट हो जाना ही उनको प्राप्त होना है।
प्रश्न- ‘तथा’ पद किसका वाचक है और उसे तू मुझसे संक्षेप में जान, इस कथन का क्या भाव है?
उत्तर- ‘यथा’ पद से विधि का लक्ष्य कराया गया है, उसी का वाचक यहाँ ‘तथा’ पद है। एवं उसे तू मुझसे संक्षेप में ही जान- इस कथन से यह भाव दिखलाया गया है कि उसका विस्तारपूर्वक वर्णन नहीं करके वह विषय में तुम्हें संक्षेप में ही बतलाऊँगा। इसलिये सावधानी के साथ उसे सुनो, नहीं तो उसे समझ नहीं सकोगे।
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