श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टादश अध्याय
सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध मे ।
उत्तर- जो ज्ञानयोग की अन्तिम स्थिति है, जिसको पराभक्ति और तत्त्वज्ञान भी कहते हैं, जो समस्त साधनों की अवधि है, उसका वाचक यहाँ ‘परा’ विशेषण के सहित ‘निष्ठा’ पद है। ज्ञानयोग के साधनसमुदाय को ज्ञाननिष्ठ कहते हैं और उन साधनों के फलरूप तत्त्वज्ञान को ज्ञान की ‘परानिष्ठा’ कहते हैं। प्रश्न- यहाँ सिद्धिम्’ पद किसका वाचक है? उत्तर- जो पूर्वश्लोक में नैष्कर्म्यसिद्धि के नाम से कही गयी है। यहाँ जो ज्ञान की परानिष्ठा बतायी गयी है तथा चौवनवें श्लोक में जिसका परा भक्ति के नाम से वर्णन आया है उसी का वाचक यहाँ ‘सिद्धिम्’ पद है। प्रश्न- ‘यथा’ पद का क्या अर्थ है? उत्तर- शुद्ध अतःकरण वाला अधिकारी पुरुष जिस विधि से ज्ञान की परानिष्ठा को प्राप्त होकर परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होता है, उस विधि का अर्थात् अंग-प्रत्यंगों सहित ज्ञानयोग के प्रकार का वाचक यहाँ ‘यथा’ पद है। प्रश्न- उपर्युक्त सिद्धि को प्राप्त हुए पुरुष को ब्रह्म की प्राप्ति कब होती है? उत्तर- सिद्धि प्राप्त होने के बाद ब्रह्म की प्राप्ति में विलम्ब नहीं होता, उसी क्षण प्राप्ति हो जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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