अष्टादश अध्याय
सम्बन्ध- इस प्रकार संन्यास (ज्ञानयोग) का तत्त्व समझाने के लिये आत्मा के अकर्तापन का प्रतिपादन करके अब उसके अनुसार कर्म के अंग- प्रत्यंगों को भली-भाँति समझाने के लिये कर्म- प्रेरणा और कर्मसंग्रह का प्रतिपादन करते हैं-
ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना ।
करणं कर्तेति त्रिविध: कर्मसंग्रह: ।। 18 ।।
ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय- यह तीन प्रकार की कर्म-प्रेरणा है और कर्ता, करण तथा क्रिय- यह तीन प्रकार का कर्म-संग्रह है।। 18 ।।
प्रश्न- ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय- ये तीनों पद अलग-अलग किन-किन तत्त्वों के वाचक हैं तथा यह तीन प्रकार की कर्म-प्रेरणा है, इस कथन का क्या भाव है?
उत्तर- किसी भी पदार्थ के स्वरूप का निश्चय करने वाले को ‘ज्ञाता’ कहते हैं; वह जिस वृत्ति के द्वारा वस्तु के स्वरूप का निश्चय करता है, उसका नाम ‘ज्ञान’ है और जिस वस्तु के स्वरूप का निश्चय करता है उसका नाम ‘ज्ञेय’ है। ‘यह तीन प्रकार की कर्म-प्रेरणा है’- इस कथन से यह भाव दिखलाया गया है कि इन तीनों के संयोग से ही मनुष्य की कर्म में प्रवृत्ति होती है अर्थात इन तीनों का सम्बन्ध ही मनुष्य को कर्म में प्रवृत्त करने वाला है। क्योंकि जब अधिकारी मनुष्य ज्ञान-वृत्ति ,द्वारा यह निश्चय कर लेता है कि अमुक-अमुक वस्तुओं द्वारा अमुक प्रकार से अमुक कर्म मुझे करना है, तभी उसकी उस कर्म में प्रवृत्ति होती है।
प्रश्न- कर्ता, करण और कर्म- ये तीनों पद अलग-अलग किन-किन तत्त्वों के वाचक हैं तथा यह तीन प्रकार का कर्म-संग्रह है, इस कथन का क्या भाव है?
उत्तर- देखना, सुनना, समझना, स्मरण करना, खाना, पीना आदि समस्त क्रियाओं को करने वाले प्रकृतिस्थ पुरुष को ‘कर्ता’ कहते हैं; उसके जिन मन, बुद्धि और इन्द्रियों के द्वारा उपर्युक्त समस्त क्रियाएँ की जाती हैं-उनका वाचक ‘करण’ पद है और उपर्युक्तज समस्त क्रियाओं का वाचक यहाँ ‘कर्म’ पद है। ‘यह तीन प्रकार का कर्म-संग्रह है’ -इस कथन से यह भाव दिखलाया गया है कि इन तीनों के संयोग से ही कर्म का संग्रह होता है; क्योंकि जब मनुष्य स्वयं कर्ता बनकर अपने मन, बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा क्रिया करके किसी कर्म को करता है- तभी कर्म बनता है इसके बिना कोई भी कर्म नहीं बन सकता। चौदहवें श्लोक में जो कर्म की सिद्धि के अधिष्ठानादि पाँच हेतु बतलाये गये हैं उनमें से अधिष्ठान और दैव को छोड़कर शेष तीनों को कर्म-संग्रह नाम दिया गया है; क्योंकि उन पाँचों में भी उपर्युक्त तीन हेतु ही मुख्य हैं।
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