अष्टादश अध्याय
सम्बन्ध- अब उन पाँच हेतुओं के नाम बतलाये जाते हैं-
अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम् ।
विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पंचमम् ।। 14 ।।
इस विषय में अर्थात कर्मों की सिद्धि में अधिष्ठान और कर्ता तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के करण एवं नाना प्रकार के अलग-अलग चेष्टाएँ और वैसे ही पाँचवाँ हेतु दैव है।। 14 ।।
प्रश्न- ‘अधिष्ठानम्’ पद यहाँ किसका वाचक है?
उत्तर- ‘अधिष्ठानम्’ पद यहाँ मुख्यता से करण और क्रिया के आधार रूप शरीर का वाचक है; किंतु गौणरूप से यज्ञादि कर्मों में तद्विषयक क्रिया के आधाररूप भूमि आदि का वाचक माना जा सकता है।
प्रश्न- ‘कर्ता’ पद यहाँ किसका वाचक है?
उत्तर- यहाँ ‘कर्ता’ पद प्रकृतिस्थ पुरुष का वाचक है। इसी को तेरहवें अध्याय के इक्कीसवें श्लोक में भोक्ता बतलाया गया है और तीसरे अध्याय के सत्ताइसवें श्लोक में ‘अहकारविमूढ़ात्मा’ कहा गया है।
प्रश्न- ‘पृथग्विधम्’ विशेषण के सहित ‘करणम्’ पद किसका वाचक है?
उत्तर- मन, बुद्धि और सहंकार भीतर के करण हैं तथा पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और पाँच कामेन्द्रियाँ- ये दस बाहर के कारण हैं; इनके सिवा और भी जो-जो स्रुवा आदि उपकरण यज्ञादि कर्मों के करने में सहायक होते हैं। वे सब बाह्य करण के अन्तर्गत हैं इसी प्रकार भिन्न-भिन्न कर्मों के करने में जितने भी भिन्न-भिन्न द्वार अथवा सहायक हैं, उन सबका वाचक यहाँ ‘पृथग्विधम्’ विशेषण के सहित ‘करणम्’ पद है।
प्रश्न- ‘विविधा’ और ‘पृथक्’- इन दोनों पदों के सहित ‘चेष्टाः’ पद किसका वाचक है?
उत्तर- एक स्थान से दूसरे स्थान में गमन करना, हाथ-पैर आदि अंगों का संचालन, श्वासों का आना-जाना, अंगों को सिकोड़ना-फैलाना, आँखों को खोलना और मूँदना, मन में संकल्प-विकल्पों का होना आदि जितनी भी हलचलरूप चेष्टाएँ हैं- उन नाना प्रकार की भिन्न-भिन्न समस्त चेष्टाओं- का वाचक यहाँ ‘विविधाः’ और ‘पृथक्’- इन दोनों पदों के सहित ‘चेष्टाः’ पद है।
प्रश्न- यहाँ ‘दैवम्’ पद किसका वाचक है और उसके साथ ‘पंचमम्’ पद के प्रयोग का क्या भाव है?
उत्तर- पूर्वकृत शुभाशुभ कर्मों के संस्कारों का वाचक यहाँ ‘दैवम्’ पद है, प्रारब्ध भी इसी के अन्तर्गत है। बहुत लोग इसे ‘अदृष्ट’ भी कहते हैं इसके साथ ‘पमम्’ पद का प्रयोग करके ‘पंच’ संख्या की पूर्ती दिखलायी गयी है अभिप्राय यह है कि पूर्वश्लोक में जो पाँच हेतुओं के सुनने के लिये कहा गया था, उसमें से चार हेतु तो दैव के पहले अलग बतलाये गये हैं और पाँचवाँ हेतु यह देव है।
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