श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
त्रयोदश अध्याय
ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना ।
उत्तर- छठे अध्याय के ग्यारह, बारह और तेरहवें श्लोक में बतलायी हुई विधि के अनुसार शुद्ध और एकान्त स्थान में उपयुक्त आसन पर निश्चल भाव से बैठकर, इन्द्रियों को विषयों से हटाकर, मन को वश में करके तथा एक परमात्मा के सिवा दृश्यमात्र को भूलकर निरन्तर परमात्मा का चिन्तन करना ध्यान है। इस प्रकार ध्यान करते रहने से बुद्धि शुद्ध हो जाती है और उस विशुद्ध सूक्ष्मबुद्धि से जो हृदय में सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार किया जाता है, वही ध्यान द्वारा आत्मा से आत्मा में आत्मा को देखना है। प्रश्न- यहाँ जिस ध्यान के द्वारा सच्चिदानन्दघन ब्रह्म की प्राप्ति बतलायी गयी है- वह ध्यान सगुण परमेश्वर का है या निर्गुण-ब्रह्म का, साकार का है या निराकार का? तथा यह ध्यान भेदभाव से किया जाता है या अभेदभाव से एवं इसके फलस्वरूप सच्चिदानन्दघन ब्रह्म की प्राप्ति भेदभाव से होती है या अभेदभाव से? उत्तर- यहाँ बाईसवें श्लोक में परमात्मा और आत्मा के अभेद का प्रतिपादन किया गया है एवं उसी के अनुसार पुरुष के स्वरूप ज्ञानरूप फल की प्राप्ति के विभिन्न साधनों का वर्णन है; इसलिये यहाँ प्रसंगानुसार निर्गुण-निराकार ब्रह्म के अभेदध्यान का ही वर्णन है और उसका फल अभिन्नभाव से ही परमात्मा की प्राप्ति बतलाया गया है, परन्तु भेदभाव से सगुण-निराकार का और सगुण-साकार का ध्यान करने वाले साधक भी यदि इस प्रकार का फल चाहते हों तो उनको भी अभेदभाव से निर्गुण-निराकार सच्चिदानन्दघन ब्रह्म की प्राप्ति हो सकती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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