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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कल्यान86 ( सखी कहती है- ) मोहन गाय चराकर आ रहे है । मस्तकपर मयूरपिच्छका मुकुट है वक्षःस्थलपर वनमाला है हाथमे छडी है और गायोंके खुरसे उडी धूलि लिपटाए हुए है । कमरमे कछनीके ऊपर किंकिणी मधुर ध्वनिसे बज रही है तथा चलते समय चरणोंमे नूपुरका शब्द हो रहा है । गोपबालकोंकी मण्डलीके बीच मेघके समान श्यामसुन्दर पीताम्बरके द्वारा बिजलीको भी लज्जित कर रहे है । गोप-सखा गुणगान करते आ रहे है बीचमे स्याम और बलराम सुशोभित है । सूरदासजी कहते है कि मेरे स्वामी ( वनमे ) असुर मारकर मनमे प्रसन्नताको बढाते हुए व्रज आ रहे है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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