शोध शुभ लग्र का हो, देखते सभी ग्रहों के स्थान।
सभी ग्रह उच्च के हो, दुर्लभ देखे अचरज मान॥
ज्योतिषी सब चकराये। जय-जय। मनहिं-मन अति हरषाये॥
जय-जय॥
भानु नृप बोलि लिये तब। जय-जय। सुनाई गुन-गाथा सब॥
जय-जय॥
मानवी नहीं कुँवारि यह। जय-जय। प्रेम-रस-सुधा-गन्धवह॥
जय-जय॥
नित्य यह हरि की प्यारी। जय-जय। नहीं तिन तें यह न्यारी॥
जय-जय॥मंगल...
मोद भर कर हृदय में हो, भानु ने खोल दिये भंडार।
रत्न, धन, धाम, कंचन हो, लुटाये हाथों खुले, उदार॥
दूध की तरुण गायें हो, करीं लाखों द्विजों को दान।
किया समान-पूजन हो, नम्र हो, छोडक़र अभिमान॥
लुटी सम्पति अनूठी। जय-जय। हीरों के हार अँगूठी॥
जय-जय॥
भानु-मन तृप्ति न आई। जय-जय। वृत्ति दे-दे न अघाई॥
जय-जय॥
रहा अब भिक्षु न कोई। जय-जय। दरिद्रता सब की खोई॥
जय-जय॥
मिटा सबका मँगतापन। जय-जय। हुए दाता उदार-मन॥
जय-जय॥मंगल...