शुन:शेप का उल्लेख पौराणिक महाकाव्य महाभारत में हुआ है। महाभारत के अनुसार यह भृगुवंशी ऋचीक [1] के पुत्र थे।
- रामायण के अनसार महर्षि ऋचीक [2] के पुत्र थे जो एक प्रसिद्ध ऋषि थे। ये महाराज हरिश्चन्द्र के यज्ञ में यज्ञ पशुरूप में बलि देने के लिए लाये थे। इन्होंने विश्वामित्र जी की बतलायी अग्नि की स्तुति की जिससे अग्नि देव इतने प्रसन्न हुए कि आग से इनका बाल भी बाँका नही हुआ और यह अग्निकुण्ड से बाहर निकल आये। इसके पश्चात यह विश्वामित्र के यहाँ रहने लगे जहाँ इनका नाम देवरात रख दिया गया था।
- ऐतरेय ब्राह्मण में यही कथा कुछ दूसरी तरह है:- राजा हरिश्चन्द्र नि:सन्तान थे। उन्होंने प्रथम पुत्र वरुण-देव को अर्पण करने का प्रण किया। सौभाग्य से एक पुत्र हुआ जिसका नाम रोहित रखा गया। कुछ दिनों तक बलि प्रदान की बात टलती गयी और अन्त में रोहित ने अपने को बलि देना अस्वीकार किया और जंगल में भाग गया। जंगल में अजीगर्त ऋषि के दूसरे पुत्र शुन:शेप को रोहित ने ऋषि से खरीद लिया। वरुण देव ने भी रोहित कि बदले शुन:शेप को बलि स्वीकार की। ठीक समय पर शुन:शेप भिन्न-भिन्न देव-देवियो की स्तुति का पाठ करने लगा जिससे प्रसन्न हो देवतओ ने शुन:शेप की प्राण रक्षा की। इसके पश्चात यह विश्वामित्र ऋषि के साथ रहने लगा।
- महाभारत और पुराणों में यही कथा दी है पर सब एक दूसरे से कुछ न कुछ न कुछ भिन्न है। [3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 108 |
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