- भीष्म दुर्योधन को बताते हैं कि जब शिखण्डनी यक्ष स्थूणाकर्ण से वर में अपने लिये पुरुषत्व की प्राप्ति की लिये कहती हैं तो, यक्ष कहते हैं कि ‘भद्रे! तुम जैसा कहती हो वैसा ही होगा मैं तुम्हें अपना पुरुषत्व दूंगा और तुम्हारा स्त्रीत्व स्वयं धारण करूंगा परंतु कार्य पूर्ण हो जाने पर तुम्हें मेरा पुरुषत्व लौटा देने की सच्ची प्रतिज्ञा करो तभी मैं तुम्हारा कार्य करूंगा।' शिखण्डिनी बोली- भगवन! तुम्हारा यह पुरुषत्व मैं समय पर लौटा दूंगी उसके बाद शिखण्डी को पुरुषत्व की प्राप्ति हो जाती हैं जब द्रुपद और रानी को यह सब पता चलता हैं तो वह बहुत प्रसन्न होते हैं और दशार्णराज को संदेश भेजते हैं कि हमारा शिखण्डी पुरुष हैं स्त्री नहीं हैं। जब यह राजा हिरण्यवर्मा को पता चलता हैं तो वह बड़े प्रसन्न होते हैं, जिसका उल्लेख महाभारत उद्योग पर्व में अम्बोपाख्यान पर्व के अंतर्गत 192वें अध्याय में हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
शिखण्डी को पुरुषत्व की प्राप्ति
भीष्म कहते हैं- भरतश्रेष्ठ कौरव! शिखण्डिनी की यह बात सुनकर दैव पीड़ित यक्ष ने मन-ही-मन कुछ सोचकर कहा- ‘भद्रे! तुम जैसा कहती हो वैसा हो तो जायगा परंतु वह मेरे दु:ख का कारण होगा, तथापि मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूंगा। इस विषय में जो मेरी शर्त है, उसे सुनो। मैं तुम्हें अपना पुरुषत्व दूंगा और तुम्हारा स्त्रीत्व स्वयं धारण करूंगा किंतु कुछ ही काल के लिये अपना यह पुरुषत्व तुम्हें दूंगा। उस निश्चित समय के भीतर ही तुम्हें मेरा पुरुषत्व लौटाने के लिये यहाँ आ जाना चाहिये। इसके लिये मुझे सच्चा वचन दो। ‘मैं सिद्धसंकल्प, सामर्थ्यशाली, इच्छानुसार सर्वत्र विचरने वाला तथा आकाश में भी चलने की शक्ति रखने वाला हूँ। तुम मेरी कृपा से केवल अपने नगर और बन्धु-बान्धवों की रक्षा करो। ‘राजकुमारी! इस प्रकार मैं तुम्हारा स्त्रीत्व धारण करूंगा, कार्य पूर्ण हो जाने पर तुम मेरा पुरुषत्व लौटा देने की मुझसे सच्ची प्रतिज्ञा करो तब मैं तुम्हारा प्रिय कार्य करूंगा’। शिखण्डिनी बोली- भगवन! तुम्हारा यह पुरुषत्व मैं समय पर लौटा दूंगी। निशाचर! तुम कुछ ही समय के लिये मेरा स्त्रीत्व धारण कर लो। दशार्णदेश के स्वामी राजा हिरण्यवर्मा के लौट जाने पर मैं फिर कन्या ही हो जाऊंगी और तुम पूर्ववत पुरुष हो जाओगे।
राजा द्रुपद का दशार्णराज को संदेश भेजना
भीष्मजी कहते हैं- नरेश्वर! इस प्रकार बात करके उन्होंने परस्पर प्रतिज्ञा कर ली तथा उन दोनों ने एक-दूसरे के शरीर में अपने-अपने पुरुषत्व और स्त्रीत्व का संक्रमण करा दिया। भारत! स्थूणाकर्ण यक्ष ने उस शिखण्डिनी के स्त्रीत्व को धारण कर लिया और शिखण्डिनी ने यक्ष का प्रकाशमान पुरुषत्व प्राप्त कर लिया। राजन! इस प्रकार पुरुषत्व पाकर पाञ्चाल राजकुमार शिखण्डी बड़े हर्ष के साथ नगर में आया और अपने पिता से मिला। उसने जैसे जो वृत्तान्त हुआ था, वह सब राजा द्रुपद से कह सुनाया। उसकी यह बात सुनकर राजा द्रुपद को अपार हर्ष हुआ। पत्नी सहित राजा को भगवान महेश्वर के दिये हुए वर का स्मरण हो आया। तदनन्तर राजा द्रुपद ने दशार्णराज के पास दूत भेजा और यह कहलाया कि मेरा पुत्र पुरुष है। आप मेरी इस बात पर विश्वास करें।
दशार्णराज का द्रुपद को संदेश भेजना
इधर दु:ख और शोक में डूबे हुए दशार्णराज ने सहसा पाञ्चालराज द्रुपद पर आक्रमण किया। काम्पिल्य नगर के निकट पहुँचकर दशार्णराज ने वेद वेत्ताओं में श्रेष्ठ एक ब्राह्मण को सत्कार पूर्वक दूत बनाकर भेजा। और कहा- ‘दूत! मेरे कथनानुसार राजाओं में अधम उस पाञ्चालनरेश से कहिये। दुर्मते! तुमने जो अपनी कन्या के लिये मेरी कन्या का वरण किया था, उस घंमड का फल तुम्हें आज देखना पड़ेगा, इसमें संशय नहीं है।'
दूत द्वारा संदेश सुनाना
नृपश्रेष्ठ! दशार्णराज का यह संदेश पाकर और उन्हीं की प्रेरणा से दूत बनाकर वे ब्राह्मण देवता काम्पिल्य नगर में आये। नगर में आकर वे पुरोहित ब्राह्मण महाराज द्रुपद से मिले। पाञ्चालराज ने सत्कारपूर्वक उन्हें अर्घ्य तथा गौ अर्पण की। उनके साथ राजकुमार शिखण्डी भी थे। राजेन्द्र! पुरोहित ने वह पूजा ग्रहण नहीं की और इस प्रकार कहा- ‘राजन! वीरवर राजा हिरण्यवर्मा ने जो संदेश दिया है, उसे सुनिये। पापाचारी दुर्बुद्धि नरेश! तुम्हारी पुत्री के द्वारा मैं ठगा गया हूँ। वह पाप तुमने ही किया है अत: उसका फल भोगो। नरेश्वर! युद्ध के मैदान में आकर मुझे युद्ध का अवसर दो। मैं मन्त्री, पुत्र और बान्धवों सहित तुम्हारे समस्त कुल को उखाड़ फेंकूंगा।'[1]
राजा हिरण्यवर्मा का शिखण्डी के पुरुष होने का पता चलना
इस प्रकार पुरोहित ने मन्त्रियों के बीच में बैठे हुए राजा द्रुपद से दशार्णराज का कहा हुआ उपालम्भयुक्त संदेश सुनाया।भरतश्रेष्ठ! तब राजा द्रुपद प्रेम से विनीत हो गये और इस प्रकार बोले- ‘ब्रह्मन! आपने मेरे सम्बन्धी के कथनानुसार जो बात मुझे सुनायी है, इसका उत्तर मेरा दूत स्वयं जाकर राजा को देगा’। तदनन्तर द्रुपद ने भी महामना हिरण्यवर्मा के पास वेदों के पारंगत विद्वान ब्राह्मण को दूत बनाकर भेजा। राजन! उन्होंने दशार्णनरेश के पास आकर द्रुपद ने जो कुछ कहा था, वह सब दुहरा दिया।‘राजन! आप आकर स्पष्ट रूप से परीक्षा कर लें। मेरा यह कुमार पुत्र है कन्या नहीं। आपसे किसी ने झूठे ही उसके कन्या होने की बात कह दी है, जो विश्वास करने के योग्य नहीं है’। राजा द्रुपद का यह उत्तर सुनकर हिरण्यवर्मा ने कुछ विचार किया और अत्यन्त मनोहर रूप वाली कुछ श्रेष्ठ युवतियों को यह जानने के लिये भेजा कि शिखण्डी स्त्री है या पुरुष।
कौरवराज! उन भेजी हुई युवतियों ने वास्तविक बात जानकर राजा हिरण्यवर्मा को बड़ी प्रसन्नता के साथ सब कुछ बता दिया। उन्होंने दशार्णराज को यह विश्वास दिला दिया कि शिखण्डी महान प्रभावशाली पुरुष है। इस प्रकार परीक्षा करके राजा हिरण्यवर्मा बड़े प्रसन्न हुए। फिर उन्होंने सम्बन्धी से मिलकर बड़े हर्ष और उल्लास के साथ वहाँ निवास किया। राजा ने अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने जामाता शिखण्डी को भी बहुत धन, हाथी, घोडे़, गाय, बैल और दासियां दीं। इतना ही नहीं, उन्होंने झूठी खबर भेजने के कारण अपनी पुत्री को भी झिड़कियां दीं। फिर वे राजा द्रुपद से सम्मानित होकर लौट गये। मनोमालिन्य दूर करके दशार्णराज हिरण्यवर्मा के प्रसन्नतापूर्वक लौट जाने पर शिखण्डिनी को भी बड़ा हर्ष हुआ।[2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
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सेनोद्योग पर्व
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| पुरोहित का हस्तिनापुर प्रस्थान
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| संजय को युधिष्ठिर का उत्तर
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प्रजागर पर्व
धृतराष्ट्र-विदुर संवाद
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| धृतराष्ट्र के प्रति विदुर का हितोपदेश
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सनत्सुजात पर्व
विदुर द्वारा सनत्सुजात से उपदेश देने के लिए प्रार्थना
| सनत्सुजात द्वारा धृतराष्ट्र के प्रश्नों का उत्तर
| ब्रह्मज्ञान में मौन, तप तथा त्याग आदि के लक्षण
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यानसंधि पर्व
संजय का कौरव सभा में आगमन
| संजय द्वारा कौरव सभा में अर्जुन का संदेश सुनाना
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| भीष्म का कर्ण पर आक्षेप और द्रोणाचार्य द्वारा भीष्मकथन का अनुमोदन
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| धृतराष्ट्र द्वारा अर्जुन से प्राप्त होने वाले भय का वर्णन
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| संजय द्वारा पांडवों की युद्ध विषयक तैयारी का वर्णन और धृतराष्ट्र का विलाप
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| धृतराष्ट्र का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
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| धृतराष्ट्र का अन्य योद्धाओं को युद्ध से भय दिखाना
| संजय द्वारा धृतराष्ट्र को कृष्ण और अर्जुन के संदेश सुनाना
| धृतराष्ट्र द्वारा कौरव-पांडव शक्ति का तुलनात्मक वर्णन
| दुर्योधन की आत्मप्रशंसा
| कर्ण की आत्मप्रशंसा एवं भीष्म द्वारा उस पर आक्षेप
| कर्ण द्वारा कौरव सभा त्यागकर जाना
| दुर्योधन द्वारा अपने पक्ष की प्रबलता का वर्णन
| विदुर का दम की महिमा बताना
| विदुर का धृतराष्ट्र से कौटुम्बिक कलह से हानि बताना
| धृतराष्ट्र का दुर्योधन को समझाना
| संजय का धृतराष्ट्र को अर्जुन का संदेश सुनाना
| धृतराष्ट्र के पास व्यास और गांधारी का आगमन
| संजय का धृतराष्ट्र को कृष्ण की महिमा बताना
| संजय द्वारा धृतराष्ट्र को कृष्णप्राप्ति एवं तत्त्वज्ञान का साधन बताना
| कृष्ण के विभिन्न नामों की व्युत्पत्तियों का कथन
| धृतराष्ट्र द्वारा भगवद्गुणगान
भगवद्यान पर्व
युधिष्ठिर का कृष्ण से अपना अभिप्राय निवेदन करना
| कृष्ण का शांतिदूत बनकर कौरव सभा में जाने का निश्चय
| कृष्ण का युधिष्ठिर को युद्ध के लिए प्रोत्साहन देना
| भीमसेन का शांति विषयक प्रस्ताव
| कृष्ण द्वारा भीमसेन को उत्तेजित करना
| कृष्ण को भीमसेन का उत्तर
| कृष्ण द्वारा भीमसेन को आश्वासन देना
| अर्जुन का कथन
| कृष्ण का अर्जुन को उत्तर देना
| नकुल का निवेदन
| सहदेव तथा सात्यकि की युद्ध हेतु सम्मति
| द्रौपदी का कृष्ण को अपना दु:ख सुनाना
| कृष्ण द्वारा द्रौपदी को आश्वासन
| कृष्ण का हस्तिनापुर को प्रस्थान
| युधिष्ठिर का कुन्ती एवं कौरवों के लिए संदेश
| कृष्ण को मार्ग में दिव्य महर्षियों का दर्शन
| वैशम्पायन द्वारा मार्ग के शुभाशुभ शकुनों का वर्णन
| कृष्ण का मार्ग में लोगों द्वारा आदर-सत्कार
| कृष्ण का वृकस्थल पहुँचकर विश्राम करना
| दुर्योधन का कृष्ण के स्वागत-सत्कार हेतु मार्ग में विश्रामस्थान बनवाना
| धृतराष्ट्र का कृष्ण की अगवानी करके उन्हें भेंट देने का विचार
| विदुर का धृतराष्ट्र को कृष्णआज्ञा का पालन करने के लिए समझाना
| दुर्योधन का कृष्ण के विषय में अपने विचार कहना
| दुर्योधन की कुमन्त्रणा से भीष्म का कुपित होना
| हस्तिनापुर में कृष्ण का स्वागत
| धृतराष्ट्र एवं विदुर के यहाँ कृष्ण का आतिथ्य
| कुन्ती का कृष्ण से अपने दु:खों का स्मरण करके विलाप करना
| कृष्ण द्वारा कुन्ती को आश्वासन देना
| कृष्ण का दुर्योधन के भोजन निमंत्रण को अस्वीकार करना
| कृष्ण का विदुर के घर पर भोजन करना
| विदुर का कृष्ण को कौरवसभा में जाने का अनौचित्य बतलाना
| कृष्ण का कौरव-पांडव संधि के प्रयत्न का औचित्य बताना
| कृष्ण का कौरवसभा में प्रवेश
| कौरवसभा में कृष्ण का स्वागत और उनके द्वारा आसनग्रहण
| कौरवसभा में कृष्ण का प्रभावशाली भाषण
| परशुराम द्वारा नर-नारायणरूप कृष्ण-अर्जुन का महत्त्व वर्णन
| कण्व मुनि का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| कण्व मुनि द्वारा मातलि का उपाख्यान आरम्भ करना
| मातलि का नारद संग वरुणलोक भ्रमण एवं अनेक आश्चर्यजनक वस्तुएँ देखना
| नारद द्वारा पाताललोक का प्रदर्शन
| नारद द्वारा हिरण्यपुर का दिग्दर्शन और वर्णन
| नारद द्वारा गरुड़लोक तथा गरुड़ की संतानों का वर्णन
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| नारद द्वारा नागलोक के नागों का वर्णन
| मातलि का नागकुमार सुमुख के साथ पुत्री के विवाह का निश्चय
| नारद का नागराज आर्यक से सुमुख तथा मातलि कन्या के विवाह का प्रस्ताव
| विष्णु द्वारा सुमुख को दीर्घायु देना तथा सुमुख-गुणकेशी विवाह
| विष्णु द्वारा गरुड़ का गर्वभंजन
| दुर्योधन द्वारा कण्व मुनि के उपदेश की अवहेलना
| नारद का दुर्योधन से धर्मराज द्वारा विश्वामित्र की परीक्षा लेने का वर्णन
| गालव द्वारा विश्वामित्र से गुरुदक्षिणा माँगने के लिए हठ का वर्णन
| गालव की चिन्ता और गरुड़ द्वारा उन्हें आश्वासन देना
| गरुड़ का गालव से पूर्व दिशा का वर्णन करना
| गरुड़ का गालव से दक्षिण दिशा का वर्णन करना
| गरुड़ का गालव से पश्चिम दिशा का वर्णन करना
| गरुड़ का गालव से उत्तर दिशा का वर्णन करना
| गरुड़ पर सवार गालव का उनके वेग से व्याकुल होना
| गरुड़ और गालव की तपस्विनी शाण्डिली से भेंट
| गरुड़ और गालव का ययाति के यहाँ आगमन
| ययाति द्वारा गालव को अपनी कन्या देना
| हर्यश्व का ययातिकन्या से वसुमना नामक पुत्र उत्पन्न करना
| दिवोदास का ययातिकन्या से प्रतर्दन नामक पुत्र उत्पन्न करना
| उशीनर का ययातिकन्या से शिबि नामक पुत्र उत्पन्न करना
| गालव द्वारा ययातिकन्या को विश्वामित्र की सेवा में देना
| ययातिकन्या माधवी का वन में जाकर तपस्या करना
| ययाति का स्वर्ग में सुखभोग तथा मोहवश तेजोहीन होना
| ययाति का स्वर्गलोक से पतन
| ययाति के दौहित्रों तथा गालव द्वारा उन्हें पुन: स्वर्गलोक भेजने का प्रयास
| ययाति का फिर से स्वर्गारोहण
| स्वर्गलोक में ययाति का स्वागत
| नारद द्वारा दुर्योधन को समझाना
| धृतराष्ट्र के अनुरोध से कृष्ण का दुर्योधन को समझाना
| भीष्म, द्रोण, विदुर और धृतराष्ट्र का दुर्योधन को समझाना
| भीष्म और द्रोण का दुर्योधन को पुन: समझाना
| दुर्योधन द्वारा पांडवों को राज्य न देने का निश्चय
| कृष्ण का दुर्योधन को फटकारना
| कृष्ण द्वारा धृतराष्ट्र को दुर्योधन आदि को कैद करने की सलाह
| गांधारी का दुर्योधन को समझाना
| सात्यकि द्वारा दुर्योधन के षड़यंत्र का भंडाफोड़
| धृतराष्ट्र और विदुर का दुर्योधन को पुन: समझाना
| कृष्ण का विश्वरूप
| कृष्ण का कौरवसभा से प्रस्थान
| कुंती का पांडवों के लिये संदेश
| कुंती द्वारा विदुलोपाख्यान का प्रारम्भ
| विदुला का पुत्र को युद्ध हेतु उत्साहित करना
| विदुला और उसके पुत्र का संवाद
| विदुला द्वारा कार्य में सफलता प्राप्ति और शत्रुवशीकरण उपायों का निर्देश
| विदुला के उपदेश से उसके पुत्र का युद्ध हेतु उद्यत होना
| कुंती का संदेश तथा कृष्ण का उनसे विदा लेना
| भीष्म और द्रोण का दुर्योधन को समझाना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को पुन: संधि के लिए समझाना
| कृष्ण का कर्ण को पांडवपक्ष में आने के लिए समझाना
| कर्ण का दुर्योधन के पक्ष में रहने का निश्चित विचार
| कर्ण द्वारा कृष्ण से समरयज्ञ के रूपक का वर्णन
| कृष्ण का कर्ण से पांडवपक्ष की निश्चित विजय का प्रतिपादन
| कर्ण द्वारा कृष्ण से पांडवों की विजय और कौरवों की पराजय दर्शाने वाले लक्षणों का वर्णन
| कर्ण द्वारा कृष्ण से अपने स्वप्न का वर्णन
| कुंती का कर्ण के पास जाना
| कुंती का कर्ण से पांडवपक्ष में मिल जाने का अनुरोध
| कर्ण की अर्जुन को छोड़कर शेष पांडवों को न मारने की प्रतिज्ञा
| कृष्ण का युधिष्ठिर से कौरवसभा में व्यक्त किये भीष्म के वचन सुनाना
| कृष्ण द्वारा द्रोणाचार्य, विदुर तथा गांधारी के महत्त्वपूर्ण वचनों का वर्णन
| दुर्योधन के प्रति धृतराष्ट्र के युक्तिसंगत वचनों का वर्णन
| कृष्ण का कौरवों के प्रति दण्ड के प्रयोग पर जोर देना
सैन्यनिर्याणपर्व
पांडवपक्ष के सेनापति का चुनाव
| पांडव सेना का कुरुक्षेत्र में प्रवेश
| कुरुक्षेत्र में पांडव सेना का पड़ाव तथा शिविर निर्माण
| दुर्योधन द्वारा सेना को सुसज्जित होने और शिविर निर्माण का आदेश
| कृष्ण का युधिष्ठिर से युद्ध को ही कर्तव्य बताना
| युधिष्ठिर का संताप और अर्जुन द्वारा कृष्ण के वचनों का समर्थन
| दुर्योधन द्वारा सेनाओं का विभाजन और सेनापतियों का अभिषेक
| दुर्योधन द्वारा भीष्म का सेनापति पद पर अभिषेक
| युधिष्ठिर द्वारा अपने सेनापतियों का अभिषेक
| बलराम का पांडव शिविर में आगमन और तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान
| रुक्मी का सहायता हेतु पांडवों और कौरवों के पास आगमन
| धृतराष्ट्र और संजय का संवाद
उलूकदूतागमनपर्व
दुर्योधन का उलूक को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजना
| पांडव शिविर में उलूक द्वारा दुर्योधन का संदेश सुनाना
| पांडवों की ओर से दुर्योधन को उसके संदेश का उत्तर
| पंडवों का संदेश लेकर उलूक का लौटना
| धृष्टद्युम्न द्वारा योद्धाओं की नियुक्ति
रथातिरथसंख्यानपर्व
भीष्म द्वारा कौरव पक्ष के रथियों और अतिरथियों का परिचय
| कौरव पक्ष के रथियों का परिचय
| कौरव पक्ष के रथी, महारथी और अतिरथियों का वर्णन
| कर्ण और भीष्म का रोषपूर्वक संवाद
| भीष्म द्वारा पांडव पक्ष के रथी और उनकी महिमा का वर्णन
| पांडव पक्ष के महारथियों का वर्णन तथा विराट और द्रुपद की प्रशंसा
| पांडव पक्ष के रथी, महारथी एवं अतिरथी आदि का वर्णन
| भीष्म का शिखण्डी और पांडवों का वध न करने का कथन
अम्बोपाख्यानपर्व
भीष्म द्वारा काशीराज की कन्याओं का अपहरण
| अम्बा का भीष्म से शाल्वराज के प्रति अनुराग प्रकट करना
| अम्बा का शाल्व द्वारा परित्याग
| अम्बा और शैखावत्य संवाद
| होत्रवाहन तथा अकृतव्रण का आगमन और उनका अम्बा से वार्तालाप
| अकृतव्रण और परशुराम का अम्बा से वार्तालाप
| अम्बा और परशुराम का संवाद तथा अकृतव्रण की सलाह
| परशुराम और भीष्म का रोषपूर्ण वार्तालाप
| परशुराम और भीष्म का युद्ध हेतु कुरुक्षेत्र में उतरना
| परशुराम के साथ भीष्म द्वारा युद्ध प्रारम्भ करना
| परशुराम और भीष्म का घोर युद्ध
| भीष्म और परशुराम का युद्ध
| भीष्म को प्रस्वापनास्त्र की प्राप्ति
| भीष्म तथा परशुराम द्वारा शक्ति और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग
| भीष्म और परशुराम के युद्ध की समाप्ति
| अम्बा की कठोर तपस्या
| अम्बा को महादेव से वरप्राप्ति तथा उसका चिता में प्रवेश
| अम्बा का द्रुपद का यहाँ जन्म और शिखण्डी नामकरण
| शिखण्डी का विवाह और दशार्णराज का कोप
| हिरण्यवर्मा के आक्रमण से द्रुपद का घबराना
| द्रुपद द्वारा नगररक्षा की व्यवस्था और देवाराधन
| शिखण्डिनी का वनगमन और स्थूणाकर्ण यक्ष से प्रार्थना
| शिखण्डी को पुरुषत्व की प्राप्ति
| स्थूणाकर्ण को कुबेर का शाप
| भीष्म का शिखण्डी को न मारने का निश्चय
| भीष्म आदि द्वारा अपनी-अपनी शक्ति का वर्णन
| अर्जुन द्वारा अपने सहायकों और युधिष्ठिर की शक्ति का परिचय देना
| कौरव सेना का रण के लिए प्रस्थान
| पांडव सेना का युद्ध के लिए प्रस्थान
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