महाभारत सभा पर्व के ‘द्यूत पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 80 के अनुसार प्रजाजनों की शोकातुरता के विषय में धृतराष्ट्र-विदुर के संवाद का वर्णन इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
कौरवों का द्रोणाचार्य की शरण में जाना
वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! विदुर का कथन और पुरवासियों की कही हुई बातें सुनकर बन्धु–बान्धवों सहित राजा धृतराष्ट्र पुन: शोक से मूर्च्छित हो गये। तब दुर्योधन, कर्ण और सुबलपुत्र शकुनि ने द्रोण को अपना द्वीप (आश्रय) माना और सम्पूर्ण राज्य उनके चरणों में समर्पित कर दिया।[1]
द्रोणाचार्य द्वारा कौरवों को आश्वासन
उस समय द्रोणाचार्य ने अमर्षशील दुर्योधन, दु:शासन, कर्ण तथा अन्य सब भरतवंशियों से कहा- ‘पाण्डव देवताओं के पुत्र हैं, अत: ब्राह्मण लोग उन्हें अवश्य बतलाते हैं। मैं यथाशक्ति सम्पूर्ण हृदय से तुम्हारे अनुकूल प्रयत्न करता हुआ तुम्हारा साथ दूँगा। भक्तिपूर्वक अपनी शरण में आये हुए इन राजाओं सहित धृतराष्ट्र पुत्रों का परित्याग करने का साहस नहीं कर सकता। दैव ही सबसे प्रबल है।[1] पाण्डव जूए में पराजित होकर धर्म के अनुसार वन में गये हैं। वे वहाँ वर्षो तक रहेंगे। 'वन में पूर्णरूप से ब्रहृाचर्य का पालन करके जब वे क्रोध और अमर्ष के वशीभूत हो यहाँ लौटेंगे, उस समय वैर का बदला अवश्य लेंगे। उनका वह प्रतीकार हमारे लिये महान् दु:ख का कारण होगा। ‘राजन्! मैंने मैत्री के विषय को लेकर कलह प्रारम्भ होने पर राजा द्रुपद को उनके राज्य से भ्रष्ट किया था; भारत! इससे दुखी होकर उन्होंने मेरे वध के लिये पुत्र प्राप्त करने की इच्छा से एक यज्ञ का आयोजन किया। ‘याज और उपयाज की तपस्या से उन्होंने अग्नि से धृष्टृद्युम्न और वेदी के मध्यभाग से सुन्दरी द्रौपदी को प्राप्त किया। ‘धृष्टृद्युम्न तो सम्बन्ध की दृष्टि से कुन्ती पुत्रों का साला ही है, अत: सदा उनका प्रिय करने में लगा रहता है, उसी से मुझे भय है। ‘उसके शरीर की कान्ति अग्नि की ज्वाला के समान उद्भासित होती है। वह देवता का दिया हुआ पुत्र है और धनुष, बाण तथा कवच के साथ प्रकट हुआ है। मरणधर्मा मनुष्य होने के कारण मुझे अब उससे महान् भय लगता है। ‘शत्रुवीरों का संहार करने वाला द्रप्रद कुमार धृष्टृद्युम्न पाण्डवों के पक्ष का पोषक हो गया है। रथियों और अति-रथियों की गणना में जिसका नाम सबसे पहले लिया जाता है, वह तरुण और वीर अर्जुन घृष्टृद्युम्न के लिये, यदि मेरे साथ उसका युद्ध हुआ तो, लड़कर प्राण तक देने के लिये उद्यत हो जायेगा। कौरवों! (अर्जुन के साथ मुझे लड़ना पड़े) इस पुथ्वी पर इससे बढ़कर महान् दु:ख मेरे लिये और क्या हो सकता है ? ‘धृष्टृद्युम्न द्रोण की मौत है, यह बात सर्वत्र फैल चुकी है। मेरे वध के लिये ही उसका जन्म हुआ है। यह भी सब लोगों ने सुन रक्खा है। धृष्टृद्युम्न स्वयं भी संसार में अपनी वीरता के लिये विख्यात है। ‘तुम्हारे लिये यह निश्चय ही बहुत उत्तम अवसर प्राप्त हुआ है। शीघ्र ही अपने कल्याण-साधन में लग जाओ। पाण्डवों वनवास दे देने मात्र से तुम्हारा अभीष्टृ सिद्ध नहीं हो सकता। ‘यह राज्य तुम लोगों को लिये शीतकाल में होने वाली ताड़ के पेड़ की छाया के समान दो ही घड़ी तक सुख देने वाला है। अब तुम बडे़-बड़े यज्ञ करो, मनमाने भोग भोगो और इच्छानुसार दान कर लो। आज से चौदह वें वर्ष में तुम्हें बहुत बड़ी मार-काट का सामना करना पड़ेगा’।[2]-
द्रोणाचार्य की बातें सुन धृतराष्ट्र का चिन्ता से आतुर होना
द्रोणाचार्य की यह बात सुनकर धृतराष्ट्र ने कहा - ‘विदुर! गुरु द्रोणाचार्य ने ठीक कहा है। तुम पाण्डवों को लौटा लाओ। यदि वे न लौटें तो वे अस्त्र-शस्त्रों से युक्त रथियों और पैदल सेनाओं से सुरिक्षत और भोग सामग्री से सम्पन्न हो सत्कारपूर्वक वन में भ्रमण के लिये जायँ; क्योंकि वे भी मेरे पुत्र ही हैं’।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 महाभारत सभा पर्व अध्याय 80 श्लोक 35-39
- ↑ 2.0 2.1 महाभारत सभा पर्व अध्याय 80 श्लोक 40-52
संबंधित लेख
महाभारत सभा पर्व में उल्लेखित कथाएँ
सभाक्रिया पर्व
श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार मयासुर द्वारा सभा भवन निर्माण
| श्रीकृष्ण की द्वारका यात्रा
| मयासुर का भीम-अर्जुन को गदा और शंख देना
| मय द्वारा निर्मित सभा भवन में युधिष्ठिर का प्रवेश
लोकपाल सभाख्यान पर्व
नारद का युधिष्ठिर को प्रश्न रूप में शिक्षा देना
| युधिष्ठिर की दिव्य सभाओं के विषय में जिज्ञासा
| इन्द्र सभा का वर्णन
| यमराज की सभा का वर्णन
| वरुण की सभा का वर्णन
| कुबेर की सभा का वर्णन
| ब्रह्माजी की सभा का वर्णन
| राजा हरिश्चंद्र का माहात्म्य
राजसूयारम्भ पर्व
युधिष्ठिर का राजसूयविषयक संकल्प
| श्रीकृष्ण की राजसूय यज्ञ की सम्मति
| जरासंध के विषय में युधिष्ठिर, भीम और श्रीकृष्ण की बातचीत
| जरासंध पर जीत के विषय में युधिष्ठिर का उत्साहहीन होना
| श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन की बात का अनुमोदन
| युधिष्ठिर को जरासंध की उत्पत्ति का प्रसंग सुनाना
| जरा राक्षसी का अपना परिचय देना
| चण्डकौशिक द्वारा जरासंध का भविष्य कथन
जरासंध वध पर्व
श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीम की मगध यात्रा
| श्रीकृष्ण द्वारा मगध की राजधानी की प्रशंसा
| श्रीकृष्ण और जरासंध का संवाद
| जरासंध की युद्ध के लिए तैयारी
| जरासंध का श्रीकृष्ण के साथ वैर का वर्णन
| भीम और जरासंध का भीषण युद्ध
| भीम द्वारा जरासंध का वध
| जरासंध द्वारा बंदी राजाओं की मुक्ति
दिग्विजय पर्व
पाण्डवों की दिग्विजय के लिए यात्रा
| अर्जुन द्वारा अनेक राजाओं तथा भगदत्त की पराजय
| अर्जुन का अनेक पर्वतीय देशों पर विजय पाना
| किम्पुरुष, हाटक, उत्तरकुरु पर अर्जुन की विजय
| भीम का पूर्व दिशा में जीतने के लिए प्रस्थान
| भीम का अनेक राजाओं से भारी धन-सम्पति जीतकर इन्द्रप्रस्थ लौटना
| सहदेव द्वारा दक्षिण दिशा की विजय
| नकुल द्वारा पश्चिम दिशा की विजय
राजसूय पर्व
श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ की दीक्षा लेना
| राजसूय यज्ञ में राजाओं, कौरवों तथा यादवों का आगमन
| राजसूय यज्ञ का वर्णन
अर्घाभिहरण पर्व
राजसूय यज्ञ में ब्राह्मणों तथा राजाओं का समागम
| भीष्म की अनुमति से श्रीकृष्ण की अग्रपूजा
| शिशुपाल के आक्षेपपूर्ण वचन
| युधिष्ठिर का शिशुपाल को समझाना
| भीष्म का शिशुपाल के आक्षेपों का उत्तर देना
| भगवान नारायण की महिमा
| भगवान नारायण द्वारा मधु-कैटभ वध
| वराह अवतार की संक्षिप्त कथा
| नृसिंह अवतार की संक्षिप्त कथा
| वामन अवतार की संक्षिप्त कथा
| दत्तात्रेय अवतार की संक्षिप्त कथा
| परशुराम अवतार की संक्षिप्त कथा
| श्रीराम अवतार की संक्षिप्त कथा
| श्रीकृष्ण अवतार की संक्षिप्त कथा
| कल्कि अवतार की संक्षिप्त कथा
| श्रीकृष्ण का प्राकट्य
| कालिय-मर्दन एवं धेनुकासुर वध
| अरिष्टासुर एवं कंस वध
| श्रीकृष्ण और बलराम का विद्याभ्यास
| श्रीकृष्ण का गुरु को दक्षिणा रूप में उनके पुत्र का जीवन देना
| नरकासुर का सैनिकों सहित वध
| श्रीकृष्ण का सोलह हजार कन्याओं को पत्नीरूप में स्वीकार करना
| श्रीकृष्ण का इन्द्रलोक जाकर अदिति को कुण्डल देना
| द्वारकापुरी का वर्णन
| रुक्मिणी के महल का वर्णन
| सत्यभामा सहित अन्य रानियों के महल का वर्णन
| श्रीकृष्ण और बलराम का द्वारका में प्रवेश
| श्रीकृष्ण द्वारा बाणासुर पर विजय
| भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण माहात्म्य का उपसंहार
| सहदेव की राजाओं को चुनौती
शिशुपाल वध पर्व
युधिष्ठिर को भीष्म का सान्त्वना देना
| शिशुपाल द्वारा भीष्म की निन्दा
| शिशुपाल की बातों पर भीम का क्रोध
| भीष्म द्वारा शिशुपाल के जन्म का वृतांत्त का वर्णन
| भीष्म की बातों से चिढ़े शिशुपाल का उन्हें फटकारना
| श्रीकृष्ण द्वारा शिशुपाल वध
| राजसूय यज्ञ की समाप्ति
| श्रीकृष्ण का स्वदेशगमन
द्यूत पर्व
व्यासजी की भविष्यवाणी से युधिष्ठिर की चिन्ता
| दुर्योधन का मय निर्मित सभा भवन को देखना
| युधिष्ठिर के वैभव को देखकर दुर्योधन का चिन्तित होना
| पाण्डवों पर विजय प्राप्त करने के लिए दुर्योधन-शकुनि की बातचीत
| दुर्योधन का द्यूत के लिए धृतराष्ट्र से अनुरोध
| धृतराष्ट्र का विदुर को इन्द्रप्रस्थ भेजना
| दुर्योधन का धृतराष्ट्र को अपने दुख और चिन्ता का कारण बताना
| युधिष्ठिर को भेंट में मिली वस्तुओं का दुर्योधन द्वारा वर्णन
| दुर्योधन द्वारा युधिष्ठिर के अभिषेक का वर्णन
| दुर्योधन को धृतराष्ट्र का समझाना
| दुर्योधन का धृतराष्ट्र को उकसाना
| द्यूतक्रीडा के लिए सभा का निर्माण
| धृतराष्ट्र का युधिष्ठिर को बुलाने के लिए विदुर को आज्ञा देना
| विदुर और धृतराष्ट्र की बातचीत
| विदुर और युधिष्ठिर बातचीत तथा युधिष्ठिर का हस्तिनापुर आना
| जुए के अनौचित्य के सम्बन्ध में युधिष्ठिर-शकुनि संवाद
| द्यूतक्रीडा का आरम्भ
| जुए में शकुनि के छल से युधिष्ठिर की हार
| धृतराष्ट्र को विदुर की चेतावनी
| विदुर द्वारा जुए का घोर विरोध
| दुर्योधन का विदुर को फटकारना और विदुर का उसे चेतावनी देना
| युधिष्ठिर का धन, राज्य, भाई, द्रौपदी सहित अपने को भी हारना
| विदुर का दुर्योधन को फटकारना
| दु:शासन का सभा में द्रौपदी को केश पकड़कर घसीटकर लाना
| सभासदों से द्रौपदी का प्रश्न
| भीम का क्रोध एवं अर्जुन को उन्हें शान्त करना
| विकर्ण की धर्मसंगत बात का कर्ण द्वारा विरोध
| द्रौपदी का चीरहरण
| विदुर द्वारा प्रह्लाद का उदाहरण देकर सभासदों को विरोध के लिए प्रेरित करना
| द्रौपदी का चेतावनी युक्त विलाप एवं भीष्म का वचन
| दुर्योधन के छल-कपटयुक्त वचन और भीम का रोषपूर्ण उद्गार
| कर्ण और दुर्योधन के वचन एवं भीम की प्रतिज्ञा
| द्रौपदी को धृतराष्ट्र से वर प्राप्ति
| कौरवों को मारने को उद्यत हुए भीम को युधिष्ठिर का शान्त करना
| धृतराष्ट्र का युधिष्ठिर को सारा धन लौटाकर इन्द्रप्रस्थ जाने का आदेश
अनुद्यूत पर्व
दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पुन: द्युतक्रीडा के लिए पाण्डवों को बुलाने का अनुरोध
| गान्धारी की धृतराष्ट्र को चेतावनी किन्तु धृतराष्ट्र का अस्वीकार करना
| धृतराष्ट्र की आज्ञा से युधिष्ठिर का पुन: जुआ खेलना और हारना
| दु:शासन द्वारा पाण्डवों का उपहास
| भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की भीषण प्रतिज्ञा
| विदुर का पाण्डवों को धर्मपूर्वक रहने का उपदेश देना
| द्रौपदी का कुन्ती से विदा लेना
| कुन्ती का विलाप एवं नगर के नर-नारियों का शोकातुर होना
| वनगमन के समय पाण्डवों की चेष्टा
| प्रजाजनों की शोकातुरता के विषय में धृतराष्ट्र-विदुर का संवाद
| शरणागत कौरवों को द्रोणाचार्य का आश्वासन
| धृतराष्ट्र की चिन्ता और उनका संजय के साथ वार्तालाप
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज