व्रज-जीवन, गो-गोपी-सुख-धन -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा कृष्ण जन्म महोत्सव एवं जय-गान

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राग भीमपलासी - ताल कहरवा

व्रज-जीवन, गो-गोपी-सुख-धन, नन्द-यशोदा के प्रिय लाल।
सखा-परमधन, गो-वत्सों के सुचि सेवक, रक्षक, गोपाल॥
गोचारक, वन-वन पावनकर, वनचर-बन्धु विविध रुचि-रंग।
क्रीड़ा सतत प्राकृत बालक सम बाल-सखागण-संग॥
असुरोद्धारक, कालिय-मर्दन, दुष्ट-निकन्दन, नित सुखरूप।
इन्द्र-दर्पहर, ब्रह्म-मोह-हर, स्वजन-दुःख-हर, रूप अनूप॥
रसमय, नयन-हरण मुनिजन-मन, सिर घुँघराले काले केश।
मुरलीधर, शिखिपिच्छ-मुकुटधर, गिरिवरधर, नव नटवर-वेश॥
रास-विहारी, कुञ्ज-विहारी, चिर-विहारी व्रजराज।
रसिक, रसार्णव, रस-पिपासु, रस-लोलुप, रस-वितरक रसराज॥
गोपीजन-मन-मोहन, गोपी-रंजन, गोपी-जीवन-प्राण।
राधाकान्त, राधिकावल्लभ, राधाप्रेम रहित परिमाण॥
राधाराध्य, राधिकाराधक, नित्य अभिन्न राधिका-तव।
प्रेम-सुधा-रस-लीलास्वादन-हेतु भिन्न नित रखते स्वत्व॥
नित नवीन सौन्दर्य-दिव्य-माधुर्य-रसामृत-सिन्धु अनन्त।
नित नवीन आनन्द-तरंगित नित्याकर्षक रूप अनन्त॥
मधुर मधुरतम नव-नीरद-तनु नील-श्यामसुन्दर गौराभ।
लीला मधुर मधुरतम शुचितम रास, महाम जीवन लाभ॥
मथुरागमन, में मुष्टि-चाणूर-कंस-कुञ्वलय-‌उद्धार।
कर के मुक्त पिता-माता को चरण-नमन कर बारंबार॥
दे आश्वासन, उन्हें सुखी कर, उग्रसेन का कर अभिषेक।
स्वयं बने सेवक, रख अपनी शुचि निष्काम-भाव की टेक॥
गये द्वारका कर के अपनी मथुरा-लीला को सपन्न।
मुक्त किया वध कर अनेक असुरों का, जो थे राज्यापन्न॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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