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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
श्रीराधा-कृष्ण के प्रति सहज, मधुर, तीव्र अनुरागवश बार-बार उनमें सुन्दर रोमांच होता है। प्रतिपद में वर्धनशील अगाध आनन्द सिन्धु में प्रति-क्षण अति उन्मत और प्रफुल्लित होकर वे हंसती हैं।।85।।
नवगलित स्वर्णवत् सुगौर ज्योतिर्मय अंगों की कांति से वे दशोंदिशाओं को प्रकाशित करती हैं, दिव्य किशोरवयस, युगल किशोर के रसातिशय में एवं भाव मदान्ध विविध वसन-भूषणों से सुसज्जित श्रीराधिका दासीगण प्रकाशित हो रहीं हैं।।86।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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