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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
हे स्वामिनि! यहाँ क्षण काल के लिए बैठिए, हे मोहन! यहाँ अवस्थान करो, जिसमें ढीले-ढाले वसनादिकों को उत्तमरूप से आपको पहिना सकूँ ललितादि सखीगण भी तुम्हें ढूँढती हुई शीघ्र तुम्हारे पास आ रही हैं, वे हंस-हंस कर तुम्हें उत्तम रूप से लज्जित करेंगी।।71।।
गद्गद् वाणीरूप मधु-धारा वर्षणकारी एवं सान्द्र विस्तृत महा-चन्द्रिकामय मुख-कमल में अनिर्वचनीय सौंदर्य दर्शन करते हुए जिनके सर्वांग पुलकित हो उठते हैं एवं अनंग विवशता वश जो चंचल हो उठते हैं, वे नित्य मिलित गौरश्यामात्मक युगलविग्रह यहाँ (श्रीवृन्दावन में) नित्य विराजमान हैं।।72।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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