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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
हे राधे! मत्त भ्रमरीगण इधर उधर संगीत कर रहीं हैं, कोकिलाएं अपना कुहू-कुहू कलरव कर रही हैं, मोर लीला-तांडव नृत्य कर रहे हैं, लता-वृक्षराज भी समस्त प्रफुल्लित होकर श्रीवृन्दावन में आज तुम्हारे आनन्द की वृद्धि कर रहे हैं।।67।।
प्रीतम ने पीछे से आकर रसाधिक्य में श्रीराधा के नेत्रों को आवृत्त किया एवं हँसने लगे- श्रीराधा ने कहा- मैं जान गई हूं, अब छोड दो, तुम ललिता हो।’’ एक सखी ने हँस कर कहा ‘‘सत्य जान गई हो, जिससे तुम पुलकित भी हो रही हो।’’ दूसरी सखी उसे दिखा कर पल्लव द्वारा शीतल वायु संचार करने लगी (इशारे से जनाय कि ‘‘वे श्यामसुन्दर हैं- ऐसा मत बताना)।।68।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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