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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
श्रीयमुना पुलिनों में हरिचन्दन आदि के वृक्षों से विरचित नवीन-नवीन मनोहर कुंजों में विहार-परायण उन श्रीगौरश्याम युगलकिशोर का भजन कर।।59।।
हाय! मैं स्वर्ण व मरकत मणि की शोभा हरण वाले दिव्यांगी एवं अनिर्वचनीय मधुर से मधुरतर युगल-विग्रह के, श्रीवृन्दावन में प्रकटित अति मधुरसार-घनानन्द बरसाने वाले रस-समुद्र की सार-स्वरूप लीलाओं का कब दर्शन करूँगा।।60।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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