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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र
सारांश यह है कि - 2. वे श्री महाप्रभु की कृपा प्राप्त कर श्रीधाम वृन्दावन में आकर निवास करने लगे और सब रचनाएं उनकी श्री वृन्दावन में ही रचित हैं। 3. समस्त सम्प्रदायों के सुधी साहित्यकारों ने, समस्त भक्त माल के संस्करणों में उन्हें श्रीकृष्ण चैतन्य देव का ही प्रिय-पार्षद स्वीकार किया है, कहीं भी दो मत नहीं हैं। 4. श्री सरस्वति पाद की समाधि आज पर्यन्त श्री गौड़ीय वैष्णवों द्वारा सेवित एवं सुरक्षित है। 5. श्री सरस्वति पाद का तिरोभाव महोत्सव सदा से श्री गौड़ीय वैष्णव ही मनाते चले आ रहे हैं। 6. श्री हित हरिवंश सम्प्रदाय में आज तक कोई भी सरस्वती, पुरी-आदि उपाधि युक्त संन्यासी शिष्य नहीं हुआ, जबकि श्री गौड़ीय सम्प्रदाय में सरस्वती, पुरी, तीर्थ आदि सब का समावेश है। 7. श्री वृन्दावन महिमामृत तथा श्री संगीत माधव आदि रचनाओं के समस्त संस्करण केवल गौड़ीय-वैष्णवों द्वारा प्रकाशित एवं प्रचारित हुए हैं और श्री राधारस-सुधानिधि के भी बंगला संस्करण सहज उपलब्ध हैं। वर्तमान में हिन्दी भाषा में सटीक कई संस्करण छप चुके हैं। अतः किसी भी दृष्टिकोण से गवेषणापूर्ण आलोचना क्यों न की जाए श्री सरस्वती पाद श्रीकृष्ण चैतन्य देव के ही कृपा पात्र हैं और यह समस्त रचनाएं उन्हीं एक ही महानुभाव की हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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