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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
श्रीवृन्दावन की नित्य केलि-कला द्वारा दिन-रात कामातुर नित्य-किशोर जिस अद्भुत मनोहर जोड़ी के प्रति अंग से उच्छलित असीम मधुर शोभायुक्त गौरनीलात्मक उज्ज्वल ज्योतिपूर्ण अमृतसमुद्र में स्थावर जंगम भेदमूलक संसार विलीन हो रहा है, उस श्रीयुगलविग्रह का भजन कर।।57।।
प्रति शाखा में, प्रति पत्र में, प्रति फूल में, प्रति फल-पल्लवादि में ही अति सौरभामृत कांतियुक्त-श्रीवृन्दावन के दिव्य वृक्षगणों को स्मरण कर ।।58।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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