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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
युगलकिशोर के केशबन्धन खुले हैं, दोनों पुलकित हो रहे हैं, स्खलित गति हैं एवं वचनामृत का प्रवाह बरसाने वाले हैं, मणिमाला टूट रहीं है, कस्तूरी आदि के लेप से सर्वांग शोभित हो रहे हैं, बहुत सूक्ष्म सा वस्त्र कटि में धारण कर रहे हैं, इस प्रकार एक स्वभाव विशिष्ट कामातुर युगलकिशोर के श्रीवृन्दावन में दर्शन करता हूँ।।55।।
श्रीवृन्दावन में भ्रमण करते-करते अतिशय रस-वश इधर उधर विहारशील कोई मधुर गौरश्याम युगलकिशोर विराजमान हैं। सदा दासीवृन्द माल्य वस्त्रादि द्वारा अति आनन्दपूर्वक उनकी शोभा संवर्धन करती हुई उनकी सेवा करती हैं।।56।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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