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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
महाश्चर्य उदारताशील परम करुणामय, आर्द्र हृदय, महा दिव्य अनन्त स्वरस विलासमय सम्पत्तिशाली, हरि-प्रेमावेश में पुलक अश्रु आदि प्रगट करने वाले इस वृन्दावन में वृक्षराज मुझे परम उत्तम रूप से स्वीकार करें।।51।।
यहाँ के समस्त वृक्षगण श्रीराधा-कृष्ण के प्रणय-रस से परिपूर्ण हैं, ये श्रीयुगलकिशोर की प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के फल-फूल धारण करते हैं और फल-फूल उनकी इच्छानुसार उनके हाथों में अपने आप पुनः पुनः गिरते हैं और ये वृक्षगण, पक्षी-समूह की सुन्दर ध्वनि एवं मधुकरों की गुंजार से भी युगल-किशोर को आनन्दित करते हैं।।52।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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