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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
श्रीवृन्दावन-धामवासी जीव समूह यदि नित्य पीड़ा दें तो उनको मन से भी पीड़ा न देकर, किन्तु भक्तिपूर्वक निरन्तर उनको नमस्कार करते हुए, शक्ति अनुसार प्रियवस्तु दान कर उनके अभाव को पूर्ण कर, जो पुरुष श्रीकृष्ण में चित्त लगाकर लाभ अलाभ में जय-अजय में, उन्नति अवनति एवं मान-अपमान में समबुद्धि रह कर श्रीवृन्दावन में वास करते हैं, उनको मै प्रणाम करता हूँ।।45।।
सहस्र सहस्र दुर्वचन, नीच द्वारा कोटि-कोटि निन्दा, भोजन वस्त्र एवं रहने के लिए स्थान घरादि की अप्राप्ति में कोटि प्रकार के दुःखों को एवं कामादि की भारी पीड़ावश अति अधिक मानसिक विकलता को सहन करते हुए जो श्रीकृष्ण की विलास भूमि-श्रीवृन्दावन में वास करते हैं- उनको मैं नमस्कार करता हूँ।।46।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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