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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
अहो अनिर्वचनीय सर्वानन्दातिसार के रस को आस्वादन करने वाले सर्वेश्वरों को भी मोहित करने वाली श्रीमद्वृन्दावन की शोभा एक बार भी मेरे हृदय में उदित हो। वह अति आश्चर्यमय श्रीहरि की शोभा-सम्पत्ति शालिनी प्रकृति की कृति विशेष है- वह मेरे हृदय में प्रतिभात हो। अहो! श्रीवृषभनुनन्दनी के चरणों के श्रीनखचन्द्र के कांति माधुर्य में मुझे पूर्ण विश्राम प्राप्त हो यही मेरी प्रार्थना है।।43।।
श्रीगौरश्याम प्रत्येक अंग छटा से दशों दिशाओं को पूर्ण कर रहे हैं। नित्य अद्भुत किशोर अवस्था युक्त हैं, नित्य कामपरायण हैं, अति आश्चर्यमय अनन्त नवकाम-कला-कौतुक में ही वे वृन्दावन में दिन-रात यापन करते हैं। अतः उन श्रीयुगल किशोर का प्रचुर प्रेम प्राप्त कर।।44।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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