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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
श्रीवृन्दावन की भूमि कहीं, स्वस्तिकरूपिणी है एवं चक्राकृति है, कहीं वर्त्तुलाकार है तो कहीं छोटी है, अन्यत्र अर्ध-चन्द्राकार है, कहीं रास लीला के उपयोगी रत्नमयी उज्ज्वल चतुष्क-आकृति व गोलाकार एवं अति सूक्ष्म हैं, और कहीं थोड़ी ऊँची विस्तृत मण्डन कला विद्या-प्रकाश से शोभित हो रही है।।23।।
मणिमय सीढियों से अति शोभित, अनेक प्रकार के विचित्र कोटि-कोटि उज्ज्वल रत्नों से बद्ध अति ऊँची अति सुन्दर एवं ऊपर के भाग से अति शोभित है, रत्न एवं स्वर्णमय वृक्षलताओं के गुच्छों द्वारा जगह जगह परम रमणीय मंडप-रूप धारण कर श्रीवृन्दावन की भूमि शोभायमान हो रही है।।24।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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