विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
तुम्हारा सखा दिव्यरात्रि में बहुविधि से मेरा केश-बन्धनादि करता है, बहुविध पत्र-भंगी रचना और अनेक प्रकार के भावों से माल्य-वस्त्रादि भूषा रचना किया करता है।।96।।
वह नित्य मेरे मुख के सन्मुख अपने मुखचन्द्र को स्थापन करता है, नित्य केवल मेरे साथ अनन्त इष्टगोष्ठी किया करता है मुझे हृदय पर धारण कर शयन करता है, हाय सखी! सर्व नागरमणि तुम्हारे सखा की प्रीति कैसे वर्णन की जा सकती है?।।97।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज